Wednesday, December 31, 2008
नए साल पर लें तीन संकल्प
भारतीयता इसलिए की हमें फ़िर 2009 में कोई मराठी और बिहारी के तौर पर अलग न करे। जब तक हम भारतीयता की सम्पूर्णता को नहीं समझेंगे तब तक हम आपस में ही उलझे रहेंगे। मुंबई पर हमले के बाद हर बिहारी, बंगाली और यूपी वालों का भी दिमाग उतना ही गरम हुआ था जितना किसी मराठी का। इसलिए नए साल के जश्न के साथ ही हमें भारतीय और सिर्फ़ भारतीय होने का भी संकल्प लेना पड़ेगा।
दूसरा भाईचारे का। धर्म के नाम पर एक-दुसरे को पिछले कई सालों से हमने लड़ते हुए देखा है। मन्दिर, मस्जिद तो कभी गिरिजाघर के नाम पर आग लगाये जाते रहे हैं। 2008 में भी ऐसे काले दिन हमने देखे हैं। अब लगातार आगे बढती दुनिया में हमें शिक्षा और बेहतर जीवन के बारे में सोचना चाहिए। यह भाईचारे से ही संभव है।
तीसरा संकल्प ईमानदारी का। हमें अपने आप से इमानदार होने की शपथ लेनी होगी। अपने आप से बहाना करने की आदत छोड़नी पड़ेगी। यह तभी संभव होगा जब हम इमानदार होंगे। अपने काम के प्रति, अपने देश के प्रति और अपनी जिम्मेदारियों के प्रति...तो आइये हम सभी आज नए साल के आते-आते ये तीन संकल्प ले लें।
जय हिन्द
प्रगति मेहता।
Tuesday, December 9, 2008
कंधार के बाद ही भारत को हमला करना चाहिए था
काठमांडू से नई दिल्ली आ रहे विमान का १९९९ में आतंकियों ने अपहरण कर लिया था। १७० सवारियों की जान-माल का ख्याल करते हुए तत्कालीन सरकार ने मसूद अजहर जैसे आतंकी को रिहा कर दिया था । आतंकियों को छोडऩे के बाद ही विमान सवारों को रिहा किया गया था । निश्चित तौर उस समय सरकार के पास भी कोई विकल्प नहीं था। विमान और हमारे लोग उनके कब्जे में थे। लेकिन क्या भारत इतना असहाय हो गया था कि विमान छुड़ाकर लाने के बाद इतने साल तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। भारत ने आज तक आतंक के खिलाफ लडऩे का कोई मजबूत स्टैंड नहीं उठाया। यही कारण रहा कि कंधार विमान के बदले आतंकियों को रिहा करना भारत को इतना महंगा पड़ रहा है। आंकड़े बताते हैं कि मात्र दो साल में भारत में ५००० से ज्यादा लोग आतंक के शिकार हो गए। यदि तत्कालीन सरकार विमान अपहरण करने वालों और उसे शह देने वाले देश के खिलाफ ऐसी ही सैन्य कार्रवाई की चेतावनी देती तो शायद आज एेसी नौबत नहीं आती। आज हमारा ताज मुंबई ही नहीं देश का भी सरताज रहता। मुंबई को हादसे का गवाह बनने से बचाया जा सकता था। संसद भवन तक के हमले को रोका जा सकता था। भारत को उसी समय यानी विमान छुड़ाकर लाने के अगले ही दिन अपने पड़ोसी देश के आतंकी शिविरों पर हमला कर देना चाहिए था। इस कदम के बाद यदि दोनों मुल्कों में जंग होती भी तो भारतीयों को गर्व ही होता। दब्बूपन और घुट-घुटकर मरने से तो अच्छा होता कि एक बार आर-पार की लड़ाई ही हो जाती। दिक्कत यही है कि हम अमेरिका की चालबाजी में फंस जाते हैं। हमारे घर में घुसकर नंगा नाच करने वालों को पर जब हम कड़ी कार्रवाई करने की बात करते हैं तो अमेरिका हमें रोकता है। विदेश मंत्री कोडोलिजा राइस का दौरा भी हमने देखा। वह सिर्फ भारत ही नहीं आईं बल्कि पाकिस्तान पहुंचकर वहां भी अपनी निकटता दिखाई। लेकिन क्या अमेरिका भी एेसा करता है। क्या वह पाकिस्तान के कबायली हिस्सों में घुसकर कार्रवाई नहीं करता है। पाकिस्तान के आतंकी शिविरों से हजारों किलोमीटर दूर स्थित अमेरिका को इतना खतरा हो सकता है तो नजदीकी देश भारत को क्यो नहीं। मेरा मानना है कि भारत को पाकिस्तान से कड़े शब्दों में दो टूक पूछना चाहिए। खुफिया सबूत भी बताती है कि मसूद अजहर आज भी पाकिस्तान में है और वहीं से भारत के खिलाफ आग उगल रहा है।
चांद से लेकर जमीं तक और शिक्षा से लेकर विज्ञान तक में भारत ने एक नई ऊंचाई तय की है। अब हमारी पहचान भी दुनिया के सामने एक शक्तिसंपन्न राष्ट्र के रूप में है। एेसे में अब भारत सरकार को चुपचाप बैठकर पाकिस्तान की कार्रवाई का इंतजार किए बगैर तुरंत सख्त कदम उठाना चाहिए। पाकिस्तान के आतंकी शिविरों पर हवाई हमला करके उसे बर्बाद कर देना चाहिए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को वह गलती नहीं करनी चाहिए जो हमारे देश के नेताओं ने कंधार अपहरण के समय किया था।
जय हिन्द , जय भारत।
Monday, December 1, 2008
यह हल रहा तो ऐसे कितने दरवाज़े बंद हो जायेंगे
एक कहावत है अति सभी जगह बर्जित है। निश्चित तौर पर यह कहावत पॉलिटिक्स में भी लागु होता है। आप नहीं रुकेंगे तो जनता आपको रोक देगी। आख़िर वही भाग्य विधाता है। समझदारी इसी में है की आप दाता की भूमिका छोड़ याचक का रुख अपनाइए। नहीं तो ऐसे कितने दरवाज़े आपके लिए बंद हो जायेंगे।
धन्यवाद। जय हिंद, जय भारत।
Wednesday, October 29, 2008
मुंबई को उतारना होगा अपने चेहरे से घटिया नकाब
Sunday, October 19, 2008
राजनीति कीजिये, लेकिन विकाश के लिए
दरअसल, कुछ राजनेता वोट की ग़लत राजनीति कर जनता को गुमराह करने लगे हैं। कहीं जमीन के नाम पर तो कहीं बाटला हाउस एनकाउंटर के नाम पर। नैनो के मुद्दे पर बंगाल को एक झटका देने के बाद अब ममता जी यहाँ पहुंचीं हैं। नैनो मामले में उनका साथ देने सपा नेता अमर सिंह बंगाल गए थे। अब सपा नेता बाटला पहुंचे हैं तो ममता जी का आना फ़र्ज़ बनता है। खैर बाटला हाउस का मामला जांच से जुडा है। इन नेताओं को घटिया राजनीति करने के बजाय निष्पक्ष समिति से इसकी जांच की मांग करनी चाहिए। आख़िर उन्हें भी समझना होगा की जब देश रहेगा तभी राजनीति भी चलेगी। इसीलिए देश के मुद्दे पर कोई कदम उठाने से पहले नेताओं को अपनी जिम्मेवारी समझनी चाहिए....राजनीति हमेशा विकाश के लिए कीजिये, विनाश के लिए नहीं.
Saturday, September 13, 2008
हिम्मत को नहीं हिला सकते ये धमाके
दोस्तों, अब हमें भी अपना कर्तव्य और फर्ज निभाना होगा। इस बार बद्मिजाजों ने देश की राजधानी पर हमला किया है। यह पूरे देश और हिन्दुस्तानियों पर हमला है। हमें चुपचाप बैठने के बजाय अपने बीच छुपे ऐसे बदमिजाज लोगों की पहचान करनी होगी। हमें यह सोचना होगा की हमारी करोड़ों की आबादी पर ये चंद लोग कैसे भारी पड़ सकते हैं। ऐसे लोग कहीं न कहीं हमारे बीच ही पनाह लेते होंगे। ये किराये का मकान लेते होंगे। रोड पर लावारिश सामान छोड़ते होंगे।। ऐसे में हम सभी को सतर्क होना होगा। ऐसे लोगों पर निगाह रखना पुलिस का काम है यह सोचकर चुपचाप बैठना ठीक नहीं है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए की सच्चे दिल का हमारा एक छोटा बच्चा भी उन आतंकियों को धुल चटाने के लिए काफी हैं। लेकिन दुःख यह है की ये आतंकवादी नामर्द होते हैं और छुपकर वार करते हैं। ऐसे में हम सभी को सड़क पर चलते समय बेहद सतर्क होने की जरुरत है। बस और ट्रेन में भी हमें अपने आसपास ध्यान रखने की जरुरत है। खासकर लावारिश सामान को लेकर तुंरत चौकस होने की जरुरत है। धर्म और मजहब से ऊपर उठकर मानवता के बारे में सोचना होगा.
ये नापाक इरादों के साथ चाहे जितने भी धमाके कर लें लेकिन इससे हिंदुस्तान झुकने वाला नहीं है। हमारा माथा हमेशा ऊँचा रहा है और रहेगा।
Wednesday, September 10, 2008
बंद कीजिये टीआरपी का ये अँधा खेल
दिनभर जहाँ जहाँ मैं गया वहां यही बात हो रही थी। सभी जगह सिर्फ़ और सिर्फ़ दुनिया ख़तम होने की ही बात चलती रही । शाम में एक सज्जन मिले कहने लगे भाई साहब आप क्या मानते हैं- बताइए ऐसी खबरें दिखाने से उन्हें रोकना चाहिए या नहीं। सचमुच कुछ चैनलों ने अब ख़बरों के साथ टीआरपी का अँधा खेल ही शुरू कर दिया है। इस खेल ने पत्रकारिता के धर्मों को पीछे धकेल दिया है। समाज को सही जानकारी देने के बजाय शुद्ध रूप से घटिया जानकारी परोसी जा रही है। लोगों को डराया जा रहा है। कभी भुत पिशाच तो कभी यमराज की सवारी दिखाते-दिखाते अब इन्हे विकाश और विनाश में भी फर्क नहीं समझ में आ रहा है। तभी तो जेनेवा से जुड़ी इस विकाश की ख़बर को इस तरह विनाश से जोड़कर रखा गया की लोग दहशत में आ गए। हमारे कल के भविष्य ये बच्चे तक डर गए हैं। क्या यही हमारा फर्ज है। मीडिया को ऐसे मुद्दे पर गंभीरता से सोचना होगा। यदि यही नजरिया रहा तो लोग मीडिया की सभी ख़बरों को बकवास समझने लगेंगे।
निश्चित तौर पर चैनल सबसे पहले ख़बर पहुंचता है। उसकी पहुँच ज्यादा से ज्यादा लोगों तक है। ऐसे में चैनल पर दिखाया जाने वाला एक-एक शब्द मायने रखता है। इस पहुँच और व्यापक दायरे का यदि सकारात्मक प्रयोग हो तो जागरूकता बढेगी। एकाध चैनल इस धर्म को निभाने की भरपूर कोशिश भी कर रहे हैं। लेकिन दुखद यह है की उनसे कहीं ज्यादा उस धर्म को भूलते जा रहे हैं।
Tuesday, September 2, 2008
सुनील गौतम को आपकी मदद चाहिए
साथियों वक्त बहुत कम है। हम सबों के बड़े भाई जैसे वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार गौतम बेहद दर्दनाक और तंगहाली की इस्थिति से गुजर रहे हैं। चार साल से वह अपनी बीमारी से लड़ रहे हैं। लेकिन अब उनके पास इलाज़ कराने तक का पैसा नहीं है। उनकी जिंदगी बचाने के लिए हर हाल में उन्हें छः सितम्बर तक एक लाख रूपये की जरुरत है। दोस्तों, ऐसी दुःख की घड़ी में तो अंजान आदमी भी किसी की मदद करता है। लेकिन सुनील जी तो हमारे बीच के हैं। उनके साथ रहकर हम सबों ने काम करना सिखा है। ऐसी दुनिया में जहाँ पैसे का कोई मोल नहीं है। न ही पैसे के आने और जाने की कोई सीमा है। जरुर मदद करनी चाहिए. दूसरी बात यह की संकट किसी के साथ भी हो सकता है। ऊपर वाले की मेहरबानी से हम सभी कमाते हैं। कोई ज्यादा तो कोई उससे कुछ कम। ऐसे में अपने बीच से कोई आदमी पैसे के बिना जिंदगी की ज़ंग हर जाए यही कतई शोभा नहीं देगा। भड़ास पर ऐसी सुचना और सुनील जी की फोटो देखकर मैं कांप गया। तुंरत विनय और राजिव्किशोर को फोन किया। सभी ने फ़ौरन कुछ कदम उठाने की बात कही। प्रेम भाई से रात में ही मैंने बात की। उन्होंने अपना अकाउंट नम्बर दिया है. हम सभी साथी यदि यथासंभव पैसे उस अकाउंट में जल्द से जल्द डाल दें तो उनकी बड़ी मदद ही नहीं हो जायेगी बल्कि एक दिया, पुरा परिवार बिखरने से बच जाएगा.....साथियों मैं निचे अकाउंट का डिटेल लिख रहा हूँ फ़ौरन जो भी बन पड़े जरुर मदद कीजियेगा....आप मदद करेंगे तो ऊपर वाला आपकी भी मदद करेगा॥
प्रेम अपने पटना के साथियों के साथ पैसे दें आएगा. यही इस ब्लॉग की भी कामयाबी होगी. धन्यवाद ।
Pragati Mehta.
Account details:-
PREM KUMAR
State Bank Of India
CHAUHATTA Branch
Patna.
Ac No-010118251890
Friday, August 29, 2008
भोज घड़ी कोहडा .....
धन्यवाद।
Wednesday, August 27, 2008
भगवान के लिए अभी पॉलिटिक्स मत कीजिये
मैं खासकर बिहार के चीफ मिनिस्टर नीतिश कुमार और रेल मंत्री लालूं प्रसाद से यह गुजारिश करता हूँ की इस दुःख की घड़ी में प्रदेश की जनता के लिए मिलजुल कर कोई ठोस कदम उठाइए। साथ ही ऊपर वाले से यह कामना करता हूँ की बाढ़ में फंसे लोगों को जल्द से जल्द मदद मिले और उनकी जिंदगी भी पटरी पर लौटे।
धन्यवाद।
Saturday, August 23, 2008
बाढ़ के वो खौफनाक मंजर...
बाढ़ की त्रासदी : भाग एक
Sunday, August 10, 2008
सचमुच कमाल के हैं आप
वो पत्ते बीन रहे एक गरीब बुजुर्ग के बारे में आपका आलेख आज भी मुझे पुरी तरह याद है। वो पीपल के पेड़ के चक्कर काटते बच्चों को दिखाते हुए आपने कहा था की ये एक दुसरे की शर्ट पकड़ कर रेलगाडी बनते हैं. मैं देखता हूँ की इंजन तो हर रोज बदलता है लेकिन गार्ड का अन्तिम डिब्बा हर रोज एक ही लड़का बनता है। क्योंकि उसके पास शर्ट नहीं है। वाह.....क्या गजब की बात कही है। ये अन्तिम पंक्ति ही पुरी बात कह गया। सचमुच ऐसी भावुक रिपोर्टिंग आप जैसा गंभीर शख्सियत ही कर सकता है। पिछले दिनों भी आपको एक अवार्ड मिला था। आज फ़िर आपके नाम बेस्ट रिपोर्टर का अवार्ड आया है। अपने साथियों की तरफ़ से आपको कोटि-कोटि बधाई। साथ ही ऊपर वाले से यह विनती करते हैं की मीडिया जगत को ऐसे कई कमाल खान दे जो हर किसी की आवाज़ बने।
धन्यवाद।
Friday, August 8, 2008
काश एक अपना भी घर होता
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कहाँ हैं फ्लैट- पीतमपुरा, द्वारका, मोतिआखान, पश्चिम बिहार, दिलशाद गार्डन, नरेला, प्रिरागार्ही, रोहिणी, शालीमार बाग़, वसंत कुञ्ज।
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कैसे-कैसे फ्लैट्स- वन रूम, डबल रूम, तीन रूम फ्लैट।
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आप कर सकते हैं आवेदन
- भारत के नागरिक हैं
- परिवार के एक ही सदस्य करें आवेदन
- आवेदक के नाम पहले से दिल्ली प्राधिकरण का फ्लैट न हो
- आवेदक के पास पैन नंबर हो
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क्या और कबतक
- ६ अगस्त से फॉर्म बिक रहा है जो १६ सितम्बर तक मिलेगा।
- उम्मीद है दिसम्बर तक आवेदन की छंटनी हो जायेगी
- उम्मीद है जनवरी में फ्लैट आवंटन हो जाए
- एस्सी के लिए १७.५ फीसदी, एसटी के लिए ७.५ फीसदी, १ फीसदी शहीद सैनिकों के परिजन और १ फीसदी पूर्व सैनिकों के लिए रिज़र्व है।
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फॉर्म यहाँ मिल रहा है
- 100 रूपये में फार्म मिल रहा है।
- दिल्ली और आसपास के कुछ बैंक जैसे एच्दिएफ्सी, केनेरा और कई बैंक ।
- आप फॉर्म यहाँ से भी डाउनलोड कर सकते है। www.dda.org.in
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कहाँ से आएगी इतनी रकम
आवेदन के समय डेढ़ लाख रूपये जमा करना है। इसे लेकर कुछ लोग परेशान हैं। लेकिन ज्यादा परेशान होने की जरुरत नहीं है। कुछ सरकारी और निजी बैंकों ने इसे फाइनेंस करने की योजना बनाई है। इसके लिए आपको पॉँच हजार या सात हजार रूपये बैंक में जमा करने होंगे। फ़िर बैंक आपकी ओर से डेढ़ लाख रूपये जमा कर देगी। फ्लैट निकल गया तो आपको डेढ़ लाख जमा करने होंगे नहीं तो ये पाँच या सात हजार रुपया आपका डूब जाएगा।
फ्लैट निकलने की इस्थिति में भी आप बैंक से लोन ले सकते हैं।
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ज्यादा जानकारी के लिए यहाँ से संपर्क करें
www.dda.org.in
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धन्यवाद।
Thursday, August 7, 2008
अब दूर नहीं रही दिल्ली
Wednesday, July 30, 2008
राजिव्किशोर की माता जी का निधन
Friday, July 25, 2008
भाई, वो डॉक्टर साहब कहाँ चले गए
Thursday, July 17, 2008
सुप्रतिम को देखिये, कभी हिम्मत मत हारिये..
सचमुच इसे सुप्रतिम की मौत पर जीत ही कहेंगे। दिल्ली की इस घटना को जिसने भी देखा वो दहल गया, लेकिन उस हिम्मतवाले को दाद दीजिये जिसने उस रड को इतने देर तक बर्दास्त किया। एक रड पहले कार में घुसता है फिर वह उसके पेट के उपरी हिस्से को भेदते हुए पीठ को पार कर जाता है। निश्चित तौर पर यह देखने वालों को भी हिलाने वाला था, लेकिन उसने अपने को पुरी तरह संभाले रखा। जहाँ एक छोटी गोली और एक छोटा चाकू भी आदमी की जान ले लेता है, वहां सुप्रतिम का अब भी सलामत रहना तो यही कहता है.....शाबाश आपके हिम्मत की और शुक्रिया उपरवाले का। साथ ही शुक्रिया उन डॉक्टरों का जिन्होंने भगवान् जैसा काम किया। इसीलिए कहा जाता है की आदमी को मरते दम तक हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। हो सकता है आपको सफलता तब मिले जब आप आखिरी छोर तक पहुँच जायें.....सुप्रतिम से यही सिख लीजिये। कभी हिम्मत मत हारिये..
धन्यवाद.
Friday, July 11, 2008
अरे ये क्या हुआ....
बेहद दर्दनाक, कोमल जी अब हमारे बिच नहीं रहे
अपने साथी कोमल जी अब हमारे बिच नहीं रहे। आजमगढ़ के करीब एक रोड एक्सीडेंट में उनकी जीवन इहलीला समाप्त हो गई। गुरुवार की देर रात वह अपने कुछ साथियों के साथ वाराणसी से लौट रहे थे की रास्ते में एक ट्रक से उनकी गाड़ी की टक्कर हो गई। इस दुर्घटना में उनके साथ ही दो अन्य की स्पॉट डेथ हो गई। इसमे अमरउजाला गोरखपुर के फोटोग्राफर वेदप्रकाश भी शामिल हैं। चार अन्य लोग अभी अस्पताल में भरती हैं। कोमल जी फिलहाल अमरउजाला गोरखपुर में कार्यरत थे। इसके पहले वह हिंदुस्तान मुजफ्फरपुर और हिंदुस्तान पटना में रह चुके है। वह करीब तैंतीस साल के थे. उनके परिवार में उनकी पत्नी, दो छोटे बच्चे और एक छोटा भाई है। वाराणसी के कई अख़बारों में भी वह काम कर चुके थे। कोमल जी के साथ ही इस दुर्घटना में मारे गए सभी लोगों की आत्मा की शान्ति के लिए श्रधान्जली देते हैं। साथ ही कामना करते हैं की उनके परिवार पर जो दुखों का पहाड़ टुटा है उसे बर्दास्त करने की हिम्मत आए। हम सभी साथी जैसे कोमल जी के साथ थे आज इस दुःख की घड़ी में उनके परिवार के साथ हैं। हादसे की जानकारी होते ही अपने कुछ साथी मुजफ्फरपुर से गोरखपुर के लिए रवाना हो गए हैं।
Tuesday, July 8, 2008
नई पारी के लिए बधाई.
प्रेम भइया पहले तो आपको जीवन की नई पारी शुरू करने के लिए बधाई। भाई व्यस्तता के कारणनहीं आ पाया। दिल्ली में रहने वाले कुछ और साथी नहीं जा पाए। लेकिन सभी ने आपको बधाई दी है। कृपया कर इसे स्वीकार करें। आप और मेरी नई भाभी दोनों को एक बार फ़िर अपने सभी भूले भटके साथियों के तरफ़ से बधाई। आपका जीवन मंगलमय हो यही कामना है.
धन्यवाद.
Saturday, July 5, 2008
बाथरूम नहीं...अब मीटिंग जनाब
धन्यवाद.
Friday, July 4, 2008
कुछ लिया है तो देना भी सीखो...
गुड मोर्निंग, मैं प्रभुराम आपका पड़ोसी। और ये मेरी बीबी नाथूराम . आज ही यहाँ आया हूँ। एक अमेरिकी कंपनी में हूँ। इसी सेक्टर में मेरा कारपोरेट ऑफिस है। हम दोनों वहीँ जॉब करते हैं। इसीलिए सोचा यहीं फ्लैट किराये पर ले लूँ। बहुत स्वागत है आपका। मैं ज्वाला प्रसाद हूँ। लेकिन आपने क्या कहा मेरी बीबी....। जी हम दोनों ने शादी कर ली है। एक दूजे को जान से ज्यादा चाहते हैं। कहकर दोनों ऑफिस निकल गए। लेकिन फौज से सेवानिवृत ज्वाला जी को भला ये बात कैसे हजम होती। भला दो लड़के आपस में कैसे शादी कर सकते हैं। ज्वाला जी ने भी अपने दरवाजे की कुण्डी लगाई और डायनिंग हॉल में निढाल बैठ सोचने लगे। पुराने ख़यालात की उनकी पत्नी भी तब तक पूजापाठ निपटा चुकी थी। आते ही कहा कौन था। किसने घंटी बजाई थी। ज्वाला बाबु ने उनकी ओर देखा और बोले-नए पड़ोसी हैं। प्रभुराम और नाथूराम। यहीं एक कंपनी में काम करते हैं। नाम सुनते ही उनकी पत्नी शारदा ने कहा क्या सोसाइटी वालों ने बैचलर को मकान दे दिया। ये कैसे किया। मेरे घर में जवान लड़कियां है। भला बगल वाले फ्लैट में बैचलर कैसे रह सकता है। यह सब चुपचाप सुन रहे ज्वाला जी कहते हैं अरे बैचलर तो है लेकिन .... अरे लेकिन क्या। अच्छा बाद में बताऊंगा। अरे अभी बताइए। परेशान ज्वाला जी गरम हो गए। कहा अरे भाई फ़िर से एक बार मुझे कन्फर्म हो लेने दो। इसके बाद ही कुछ बताऊंगा। उनकी पत्नी और झुंझला गई। पहले बात तो बताइए कन्फर्म बाद में कीजियेगा। ऐसी कौन सी बात है की आप इतना परेशान हो गए। कोई चारा नहीं देख ज्वाला जी बोले अरे क्या कहें। बैचलर तो है लेकिन कह रहे थे की दोनों मियां-बीबी हैं। क्या दो लड़के भला मियां-बीबी कैसे हो सकते हैं। आपका दिमाग तो ठीक हैं न। अरे यही सुनकर तो मेरा दिमाग घूम गया है। भला दो लड़के मियां-बीबी कैसे हो सकते हैं। हे भगवान् । इतने में उनकी बड़ी बिटिया रीमा आ गई। क्यों भगवान्-भगवान् हो रही है। ऐसा क्या हो गया। अरे पापा सुना नए पड़ोसी आए हैं। क्या करते हैं। अंकल, आंटी ही हैं की बच्चे भी। अरे तुम्हे क्या लेना देना कोई भी हो। अरे भाई मुझे लगा की बड़े बच्चे होंगे तो मेरे फ्रेंड बनेंगे। छोटे बच्चे होंगे तो और मजे से टाइम पास होगा। इतने में उसकी मम्मी बोली। अरे कोई नहीं है दो लड़के कहाँ से आ गए हैं। ये सोसाइटी वालों ने ठीक नहीं किया। लेकिन तुम्हें इससे क्या है। कोई हो। अगले दिन यह समस्या लेकर ज्वाला जी अपने एक सेवानिवृत बॉस के यहाँ पहुंचे।देखते ही बॉस ने बैठने को तो कहा लेकिन कुछ सोच में तल्लीन दिखे। चेहरे पर चिंता साफ दिख रही थी। खैर उन्होंने रुमाल से पसीना साफ करते हुए कहा और ज्वाला बताओ कैसे आना हुआ। ज्वाला जी ने पहले उनकी चिंता के बारे में पूछा। उन्होंने कहा अरे क्या कहूँ एक पड़ोसी से परेशान हूँ,। मेरे बगल वाले फ्लैट में दो लड़कियां आई हैं। सुबह दोनों ने मुझे नमस्ते अंकल कहा। तबतक तो ठीक था लेकिन इसके बाद जो कहा वो आज तक मेरे दिमाग में नाच रहा है। जानते हो ज्वाला वो दोनों कोई पच्चीस साल की होंगी। टेंशन यह है की मैंने पूछा की तुम दोनों अकेली रहोगी की घर से कोई और आएँगे। इतने में उन दोनों ने कहा अब कौन आयेंगे अंकल। हम दोनों मियां-बीबी हैं। हमने शादी कर ली है। तुम ही बताओ ज्वाला भला ऐसा कभी हो सकता है की दो लड़कियां एक-दुसरे की पति पत्नी हो।बॉस मैं क्या कहूँ मैं भी तो वही आपसे पूछने आया था की क्या दो लड़के आपस में पति-पत्नी हो सकते हैं। क्या मतलब। बॉस जैसे आपके पड़ोस में दो लड़कियां आपके लिए टेंशन बनी हैं उसी तरह मेरे पड़ोस में दो लड़के टेंशन बन गए हैं। फिर क्या दोनों बुढ्ढे अपनी पुरानी संस्कृति के पन्ने खोलने लगे। पति-पत्नी, वो अग्नि साक्षी और शादी। अब तो नया जमाना है। शादी के लिए भला लड़के की क्या जरुरत। लड़का-लड़का से और लड़की-लड़की से ही शादी कर रहे हैं। लेकिन ज्वाला क्या यही समाज है। इसी के लिए हमने संघर्ष किया। भला इन बच्चों का वंश कैसे चलेगा। क्या इनके माता-पिता सहमत होंगे। उनके दिल पर क्या बीतेगी। एक हमारा समाज है की लड़की से दोस्ती पर भी नज़र नहीं उठती थी घरवालों के सामने। और ये भला इतनी बड़ी बात... इन्हे कौन समझायेगा की यही जिंदगी नहीं है। खाने-पिने-भोगने से आगे भी कुछ है..समाज को भी कुछ देना होगा जिसने तुम्हे बहुत कुछ दिया है। उस पिता के अरमान और माता की चाहत का क्या होगा जो तुम्हे चम्मच में दूध पिलाने से लेकर चंदा मामा दिखाने तक कुछ सपने देखती थीं। कुछ लिया है तो देना भी सीखो...
धन्यवाद.
Wednesday, July 2, 2008
जल्द चंगा हों आप
सभी साथियों को मेरा नमस्कार,
सबसे पहले मैं अपनी टीम की तरफ़ से विनय भाई को थोडी आजादी के लिए बधाई देना चाहूँगा। दिल्ली आकर उन्होंने सहारा ज्वाइन किया पिछले महीने रिक्क्शेवाले की गलती से उनका लेफ्ट हाथ टूट गया। आप सोच रहे होंगे की उनका हाथ टूट गया और ये बधाई कैसी। बधाई इसलिए की हाथ पर लगे बंधन नुमा प्लास्टर को सफलतापूर्वक उन्होंने झेल लिया। अब प्लास्टर उतर गया है। सो हाथ को थोडी रहत मिली है। इसीलिए बधाई। पुरी बधाई इसलिए नहीं की अभी उनको थोड़ा और धैर्य दिखाना है। वह काफी संयमित व्यक्तित्वा वाले पहले से हैं। खैर हमलोग यही उम्मीद करेंगे की आगे कुछ दिन और धैर्य रखें ताकि हाथ फिर से हर कम के लिए चंगा हो जाए। ब्लॉग के साथी आपके जल्द दुरुस्त होने की कामना करते हैं।
धन्यवाद.
Monday, June 30, 2008
शायद वही पुराने दिन ठीक थे, जब....
धन्यवाद ।
Sunday, June 29, 2008
सचमुच वो एक जुनून था, जो आज भी जारी है
प्रेम भाई सामने आए हैं, आप सबों को बुलाया है
Monday, June 23, 2008
बधाई हो भाई;
Saturday, June 21, 2008
जिंदगी का अहम् दिन
G4Feb । यानि 4 फरवरी 2000। वैसे तो हर एक दिन कैलेंडर का हिस्सा है लेकिन 4 फरवरी 2000 हम उन सभी साथियों के जीवन का ऐसा अंग बन गया है जिसे मिटाना या भुलाना शायद किसी के लिए संभव नहीं। शायद यह याद करने की भी जरुरत नहीं की इसी दिन हम सभी मिले थे। पटना स्थित 'हिंदुस्तान' के उस 'पाठशाला' में जहाँ गुरु रूप में आदरणीय गिरीश मिश्रा जी हमें सिखाते थे। आज भले अपने ज्यादातर साथी देश के विभिन्न मीडिया समूह में हैं। कोई देश के प्रमुख समाचार चैनेल में है तो कोई बड़े अख़बार में। लेकिन खुशी इसी बात की है की आज भी सभी एक परिवार की तरह जुड़े हैं। पत्रकारिता के इसी आठ साल के सफर मैं मैंने इस जुडाव को और मजबूत बनने के लिए इस ब्लॉग को बनाया है। ब्लॉग का क्रिएशन तभी सफल होगा जब सभी साथी इससे जुडेंगे। सिर्फ़ जुडेंगे ही नहीं बल्कि एक दुसरे की खुशी और गम को मिलकर बाँटेंगे। आइये इसी कड़ी को आगे बढाएं । धन्यवाद ।
pragati Mehta ........