Monday, December 1, 2008

यह हल रहा तो ऐसे कितने दरवाज़े बंद हो जायेंगे

भारत अब इन आतंकी वारदातों से नहीं दहलता। इतना विशाल और शक्तिशाली देश भला डर भी नहीं सकता। आतंकी वारदातें भी यहाँ के लिए नई बात नही रह गई। लेकिन केरल की एक घटना ने जरुर पूरे देश को झकझोर दिया। मौत पर राजनीति करने की जो शर्मनाक परम्परा शुरू हुई है यह उसी का रिजल्ट है। मेज़र संदीप के पिता ने जिस तरह केरला के सीएम को खदेडा उसकी ज्यादातर लोगों ने तारीफ ही की। कहीं कोई हादसा हो नेता तो अब सिर्फ़ और सिर्फ़ मुआवजा की ही भाषा बोलने लगे हैं। ट्रेन दुर्घटना हो या किसी की शहादत इन्हे सिर्फ़ यही जुबान बोलने आती है। पक्ष और विपक्ष दोनों पार्टियाँ वही करती हैं। कोई सरकारी धन देता है तो कोई पार्टी फंड से मुआवजा की घोषणा करता है। पिछले ही दिनों बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद एक पार्टी के बडबोलू नेता ने भी कुछ ऐसा ही क्या। इधर शहीद मोहन चंद्र शर्मा के घर पर चेक भेजा और उधर एनकाउंटर पर ही सवाल उठाने लगे। आख़िर यह दोहरा चेहरा कब तक दिखाते रहेंगे आप। शहीद शर्मा के परिज़नों ने भी चेक लौटा दिया और उधर उन्नीकृष्णन के पिता ने सीएम को ही लौटा दिया।
एक कहावत है अति सभी जगह बर्जित है। निश्चित तौर पर यह कहावत पॉलिटिक्स में भी लागु होता है। आप नहीं रुकेंगे तो जनता आपको रोक देगी। आख़िर वही भाग्य विधाता है। समझदारी इसी में है की आप दाता की भूमिका छोड़ याचक का रुख अपनाइए। नहीं तो ऐसे कितने दरवाज़े आपके लिए बंद हो जायेंगे।

धन्यवाद। जय हिंद, जय भारत।

3 comments:

Alpana Verma said...

अति सभी जगह बर्जित है!

दरवाज़े ऐसे लोगों के लिए बंद होने भी चाहियें--शुक्र है शहीद शर्मा के परिज़नों और शहीद उन्नीकृष्णन के पिता ने शुरुआत तो की!

Ashok Pandey said...

सरकारी खजाने का हो या पार्टी फंड का, पैसा तो जनता का ही होता है। अपने बाप की कमाई मुआवजे में देते तो कोई बात होती। वही कहावत है ना कि माल महाराज का मिर्जा खेले होरी।

लेकिन दिक्‍कत यह है प्रगति भाई कि हमारा बुद्धिजीवी वर्ग आमजन से दूरी रखता है और ये धूर्त नेतागण जनता में लोटपोट कर वोट हथियाना जानते हैं।

Sanjeev said...

सही समय पर सही बात कहने का माद्दा बहुत कम लोगों में होता है। शहीदों के परिजनों ने प्रशंसनीय काम किया है।