Saturday, September 13, 2008

हिम्मत को नहीं हिला सकते ये धमाके

बहुत हुआ। जयपुर और अहमदाबाद के बाद बद्मिजाजों ने अब दिल्ली को निशाना बनाया है। ऐसी घटनाओं के बाद तमाम लोग पुलिस और खुफिया तंत्र की बखिया उधेड़ने में लग जाते हैं। राजनेता भी एक-दुसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगते हैं। और फ़िर पुलिस कुछ लोगों को हिरासत में ले लेती है। और जाँच का लंबा सिलसिला शुरू हो जाता है।
दोस्तों, अब हमें भी अपना कर्तव्य और फर्ज निभाना होगा। इस बार बद्मिजाजों ने देश की राजधानी पर हमला किया है। यह पूरे देश और हिन्दुस्तानियों पर हमला है। हमें चुपचाप बैठने के बजाय अपने बीच छुपे ऐसे बदमिजाज लोगों की पहचान करनी होगी। हमें यह सोचना होगा की हमारी करोड़ों की आबादी पर ये चंद लोग कैसे भारी पड़ सकते हैं। ऐसे लोग कहीं न कहीं हमारे बीच ही पनाह लेते होंगे। ये किराये का मकान लेते होंगे। रोड पर लावारिश सामान छोड़ते होंगे।। ऐसे में हम सभी को सतर्क होना होगा। ऐसे लोगों पर निगाह रखना पुलिस का काम है यह सोचकर चुपचाप बैठना ठीक नहीं है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए की सच्चे दिल का हमारा एक छोटा बच्चा भी उन आतंकियों को धुल चटाने के लिए काफी हैं। लेकिन दुःख यह है की ये आतंकवादी नामर्द होते हैं और छुपकर वार करते हैं। ऐसे में हम सभी को सड़क पर चलते समय बेहद सतर्क होने की जरुरत है। बस और ट्रेन में भी हमें अपने आसपास ध्यान रखने की जरुरत है। खासकर लावारिश सामान को लेकर तुंरत चौकस होने की जरुरत है। धर्म और मजहब से ऊपर उठकर मानवता के बारे में सोचना होगा.
ये नापाक इरादों के साथ चाहे जितने भी धमाके कर लें लेकिन इससे हिंदुस्तान झुकने वाला नहीं है। हमारा माथा हमेशा ऊँचा रहा है और रहेगा।

Wednesday, September 10, 2008

बंद कीजिये टीआरपी का ये अँधा खेल

बुधवार सुबह मैं घुमने के लिए अपार्टमेन्ट से बहार निकल रहा था। रोज की तरह कुछ बच्चे स्कूल जाने को बस का वेट कर रहे थे। लेकिन आज देखा की कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो आज स्कूल नहीं जाना चाह रहे हैं । उनका कहना था की आज प्रलय आने वाला है। मैं आपलोगों के साथ घर में ही रहना चाहता हूँ, लेकिन उसके पापा ने उसे जबरन बस में बिठा दिया। बस रवाना होने पर उसके पिता मुखातिब हुए और कहने लगे। अरे बॉस क्या कहूँ। कई दिनों से टीवी में १० सितम्बर को दुनिया ख़तम होने की आशंका जताई जा रही थी। बच्चे टीवी देखते रहते हैं। ऐसे में आज बहुत ज्यादा डरे हुए थे। स्कूल ही नहीं जाना चाह रहे थे। मैं इन बातों को सोचता हुआ अभी आगे बढ ही रहा था की सिस्टर का फोन आ गया। उनकी भी यही प्रॉब्लम थी। कहने लगीं की ये मीडिया वाले क्या-क्या दिखाते रहते हैं। आज तुम्हारा भांजा स्कूल जाने को तैयार ही नहीं हो रहा था।
दिनभर जहाँ जहाँ मैं गया वहां यही बात हो रही थी। सभी जगह सिर्फ़ और सिर्फ़ दुनिया ख़तम होने की ही बात चलती रही । शाम में एक सज्जन मिले कहने लगे भाई साहब आप क्या मानते हैं- बताइए ऐसी खबरें दिखाने से उन्हें रोकना चाहिए या नहीं। सचमुच कुछ चैनलों ने अब ख़बरों के साथ टीआरपी का अँधा खेल ही शुरू कर दिया है। इस खेल ने पत्रकारिता के धर्मों को पीछे धकेल दिया है। समाज को सही जानकारी देने के बजाय शुद्ध रूप से घटिया जानकारी परोसी जा रही है। लोगों को डराया जा रहा है। कभी भुत पिशाच तो कभी यमराज की सवारी दिखाते-दिखाते अब इन्हे विकाश और विनाश में भी फर्क नहीं समझ में आ रहा है। तभी तो जेनेवा से जुड़ी इस विकाश की ख़बर को इस तरह विनाश से जोड़कर रखा गया की लोग दहशत में आ गए। हमारे कल के भविष्य ये बच्चे तक डर गए हैं। क्या यही हमारा फर्ज है। मीडिया को ऐसे मुद्दे पर गंभीरता से सोचना होगा। यदि यही नजरिया रहा तो लोग मीडिया की सभी ख़बरों को बकवास समझने लगेंगे।
निश्चित तौर पर चैनल सबसे पहले ख़बर पहुंचता है। उसकी पहुँच ज्यादा से ज्यादा लोगों तक है। ऐसे में चैनल पर दिखाया जाने वाला एक-एक शब्द मायने रखता है। इस पहुँच और व्यापक दायरे का यदि सकारात्मक प्रयोग हो तो जागरूकता बढेगी। एकाध चैनल इस धर्म को निभाने की भरपूर कोशिश भी कर रहे हैं। लेकिन दुखद यह है की उनसे कहीं ज्यादा उस धर्म को भूलते जा रहे हैं।

Tuesday, September 2, 2008

सुनील गौतम को आपकी मदद चाहिए


साथियों वक्त बहुत कम है। हम सबों के बड़े भाई जैसे वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार गौतम बेहद दर्दनाक और तंगहाली की इस्थिति से गुजर रहे हैं। चार साल से वह अपनी बीमारी से लड़ रहे हैं। लेकिन अब उनके पास इलाज़ कराने तक का पैसा नहीं है। उनकी जिंदगी बचाने के लिए हर हाल में उन्हें छः सितम्बर तक एक लाख रूपये की जरुरत है। दोस्तों, ऐसी दुःख की घड़ी में तो अंजान आदमी भी किसी की मदद करता है। लेकिन सुनील जी तो हमारे बीच के हैं। उनके साथ रहकर हम सबों ने काम करना सिखा है। ऐसी दुनिया में जहाँ पैसे का कोई मोल नहीं है। न ही पैसे के आने और जाने की कोई सीमा है। जरुर मदद करनी चाहिए. दूसरी बात यह की संकट किसी के साथ भी हो सकता है। ऊपर वाले की मेहरबानी से हम सभी कमाते हैं। कोई ज्यादा तो कोई उससे कुछ कम। ऐसे में अपने बीच से कोई आदमी पैसे के बिना जिंदगी की ज़ंग हर जाए यही कतई शोभा नहीं देगा। भड़ास पर ऐसी सुचना और सुनील जी की फोटो देखकर मैं कांप गया। तुंरत विनय और राजिव्किशोर को फोन किया। सभी ने फ़ौरन कुछ कदम उठाने की बात कही। प्रेम भाई से रात में ही मैंने बात की। उन्होंने अपना अकाउंट नम्बर दिया है. हम सभी साथी यदि यथासंभव पैसे उस अकाउंट में जल्द से जल्द डाल दें तो उनकी बड़ी मदद ही नहीं हो जायेगी बल्कि एक दिया, पुरा परिवार बिखरने से बच जाएगा.....साथियों मैं निचे अकाउंट का डिटेल लिख रहा हूँ फ़ौरन जो भी बन पड़े जरुर मदद कीजियेगा....आप मदद करेंगे तो ऊपर वाला आपकी भी मदद करेगा॥
प्रेम अपने पटना के साथियों के साथ पैसे दें आएगा. यही इस ब्लॉग की भी कामयाबी होगी. धन्यवाद ।
Pragati Mehta.


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PREM KUMAR
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