Wednesday, September 10, 2008

बंद कीजिये टीआरपी का ये अँधा खेल

बुधवार सुबह मैं घुमने के लिए अपार्टमेन्ट से बहार निकल रहा था। रोज की तरह कुछ बच्चे स्कूल जाने को बस का वेट कर रहे थे। लेकिन आज देखा की कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो आज स्कूल नहीं जाना चाह रहे हैं । उनका कहना था की आज प्रलय आने वाला है। मैं आपलोगों के साथ घर में ही रहना चाहता हूँ, लेकिन उसके पापा ने उसे जबरन बस में बिठा दिया। बस रवाना होने पर उसके पिता मुखातिब हुए और कहने लगे। अरे बॉस क्या कहूँ। कई दिनों से टीवी में १० सितम्बर को दुनिया ख़तम होने की आशंका जताई जा रही थी। बच्चे टीवी देखते रहते हैं। ऐसे में आज बहुत ज्यादा डरे हुए थे। स्कूल ही नहीं जाना चाह रहे थे। मैं इन बातों को सोचता हुआ अभी आगे बढ ही रहा था की सिस्टर का फोन आ गया। उनकी भी यही प्रॉब्लम थी। कहने लगीं की ये मीडिया वाले क्या-क्या दिखाते रहते हैं। आज तुम्हारा भांजा स्कूल जाने को तैयार ही नहीं हो रहा था।
दिनभर जहाँ जहाँ मैं गया वहां यही बात हो रही थी। सभी जगह सिर्फ़ और सिर्फ़ दुनिया ख़तम होने की ही बात चलती रही । शाम में एक सज्जन मिले कहने लगे भाई साहब आप क्या मानते हैं- बताइए ऐसी खबरें दिखाने से उन्हें रोकना चाहिए या नहीं। सचमुच कुछ चैनलों ने अब ख़बरों के साथ टीआरपी का अँधा खेल ही शुरू कर दिया है। इस खेल ने पत्रकारिता के धर्मों को पीछे धकेल दिया है। समाज को सही जानकारी देने के बजाय शुद्ध रूप से घटिया जानकारी परोसी जा रही है। लोगों को डराया जा रहा है। कभी भुत पिशाच तो कभी यमराज की सवारी दिखाते-दिखाते अब इन्हे विकाश और विनाश में भी फर्क नहीं समझ में आ रहा है। तभी तो जेनेवा से जुड़ी इस विकाश की ख़बर को इस तरह विनाश से जोड़कर रखा गया की लोग दहशत में आ गए। हमारे कल के भविष्य ये बच्चे तक डर गए हैं। क्या यही हमारा फर्ज है। मीडिया को ऐसे मुद्दे पर गंभीरता से सोचना होगा। यदि यही नजरिया रहा तो लोग मीडिया की सभी ख़बरों को बकवास समझने लगेंगे।
निश्चित तौर पर चैनल सबसे पहले ख़बर पहुंचता है। उसकी पहुँच ज्यादा से ज्यादा लोगों तक है। ऐसे में चैनल पर दिखाया जाने वाला एक-एक शब्द मायने रखता है। इस पहुँच और व्यापक दायरे का यदि सकारात्मक प्रयोग हो तो जागरूकता बढेगी। एकाध चैनल इस धर्म को निभाने की भरपूर कोशिश भी कर रहे हैं। लेकिन दुखद यह है की उनसे कहीं ज्यादा उस धर्म को भूलते जा रहे हैं।

2 comments:

कुन्नू सिंह said...

एक दम सही कहे हैं आप।
अब तो मै न्यूज चैनल देख कर सोचता हूं की कीतना ईनका स्तर गीर गया है। ऎसी खबरो से टीआरपी तो बढेगा ही। साथ साथ ऎसी खबरे दीखाने मे ईनका कोई मेहनत नही लगेगा। यानी बैठे बैठे फायदे मंद न्यूज मील गया।

वैसे न्यूज चैनल तो उनका अपना है। चाहे जो करे।
पर एक ही न्यूज 4 या 6 घंटे तक दीखाना सही नही है।

दिनेशराय द्विवेदी said...

हमारे राजनेता भी चाहते हैं कि प्रचार माध्यम ऐसे ही जनता को उलझाए रखें। प्रचार माध्यमों के इस व्यवहार पर पाबंदी लगनी चाहिए।