Wednesday, December 31, 2008

नए साल पर लें तीन संकल्प

अभी रात के 9 बजे हैं. सिर्फ़ तीन घंटे बाद ही नया साल आ जाएगा। सभी जगह नए साल के आगमन की खुशी में धमा चौकडी मची है। कहीं डीजे है तो कहीं मेले लगे हैं। जश्न के इस क्षण में हम भी शामिल हैं। लेकिन मेरी यह गुजारिश है की समय के साथ हमें भी चलना चाहिए। हमें आने वाले तीन घंटे में ही नए साल के लिए कम से कम तीन संकल्प भी लेने चाहिए। भारतीयता, भाईचारे और ईमानदारी की।
भारतीयता इसलिए की हमें फ़िर 2009 में कोई मराठी और बिहारी के तौर पर अलग न करे। जब तक हम भारतीयता की सम्पूर्णता को नहीं समझेंगे तब तक हम आपस में ही उलझे रहेंगे। मुंबई पर हमले के बाद हर बिहारी, बंगाली और यूपी वालों का भी दिमाग उतना ही गरम हुआ था जितना किसी मराठी का। इसलिए नए साल के जश्न के साथ ही हमें भारतीय और सिर्फ़ भारतीय होने का भी संकल्प लेना पड़ेगा।
दूसरा भाईचारे का। धर्म के नाम पर एक-दुसरे को पिछले कई सालों से हमने लड़ते हुए देखा है। मन्दिर, मस्जिद तो कभी गिरिजाघर के नाम पर आग लगाये जाते रहे हैं। 2008 में भी ऐसे काले दिन हमने देखे हैं। अब लगातार आगे बढती दुनिया में हमें शिक्षा और बेहतर जीवन के बारे में सोचना चाहिए। यह भाईचारे से ही संभव है।
तीसरा संकल्प ईमानदारी का। हमें अपने आप से इमानदार होने की शपथ लेनी होगी। अपने आप से बहाना करने की आदत छोड़नी पड़ेगी। यह तभी संभव होगा जब हम इमानदार होंगे। अपने काम के प्रति, अपने देश के प्रति और अपनी जिम्मेदारियों के प्रति...तो आइये हम सभी आज नए साल के आते-आते ये तीन संकल्प ले लें।

जय हिन्द
प्रगति मेहता।

Tuesday, December 9, 2008

कंधार के बाद ही भारत को हमला करना चाहिए था

मुंबई हादसे के बाद से ही भारत सरकार ने सख्त रवैया अपनाया और पाकिस्तान को वांछित आतंकियों की एक सूची सौंप दी। विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने तो सैन्य कार्रवाई से भी परहेज न करने की बात कहकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर माहौल गर्मा दिया था। निश्चित तौर पर अब भारत जैसे सहनशील देश के सामने इसके सिवाय कोई चारा नहीं बचा था। लेकिन मेरा मानना है कि भारत को तो उसी समय पाकिस्तानी आतंकी शिविरों पर हमला कर देना चाहिए था जिस समय हमारे देश से विमान का अपहरण हुआ था।
काठमांडू से नई दिल्ली आ रहे विमान का १९९९ में आतंकियों ने अपहरण कर लिया था। १७० सवारियों की जान-माल का ख्याल करते हुए तत्कालीन सरकार ने मसूद अजहर जैसे आतंकी को रिहा कर दिया था । आतंकियों को छोडऩे के बाद ही विमान सवारों को रिहा किया गया था । निश्चित तौर उस समय सरकार के पास भी कोई विकल्प नहीं था। विमान और हमारे लोग उनके कब्जे में थे। लेकिन क्या भारत इतना असहाय हो गया था कि विमान छुड़ाकर लाने के बाद इतने साल तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। भारत ने आज तक आतंक के खिलाफ लडऩे का कोई मजबूत स्टैंड नहीं उठाया। यही कारण रहा कि कंधार विमान के बदले आतंकियों को रिहा करना भारत को इतना महंगा पड़ रहा है। आंकड़े बताते हैं कि मात्र दो साल में भारत में ५००० से ज्यादा लोग आतंक के शिकार हो गए। यदि तत्कालीन सरकार विमान अपहरण करने वालों और उसे शह देने वाले देश के खिलाफ ऐसी ही सैन्य कार्रवाई की चेतावनी देती तो शायद आज एेसी नौबत नहीं आती। आज हमारा ताज मुंबई ही नहीं देश का भी सरताज रहता। मुंबई को हादसे का गवाह बनने से बचाया जा सकता था। संसद भवन तक के हमले को रोका जा सकता था। भारत को उसी समय यानी विमान छुड़ाकर लाने के अगले ही दिन अपने पड़ोसी देश के आतंकी शिविरों पर हमला कर देना चाहिए था। इस कदम के बाद यदि दोनों मुल्कों में जंग होती भी तो भारतीयों को गर्व ही होता। दब्बूपन और घुट-घुटकर मरने से तो अच्छा होता कि एक बार आर-पार की लड़ाई ही हो जाती। दिक्कत यही है कि हम अमेरिका की चालबाजी में फंस जाते हैं। हमारे घर में घुसकर नंगा नाच करने वालों को पर जब हम कड़ी कार्रवाई करने की बात करते हैं तो अमेरिका हमें रोकता है। विदेश मंत्री कोडोलिजा राइस का दौरा भी हमने देखा। वह सिर्फ भारत ही नहीं आईं बल्कि पाकिस्तान पहुंचकर वहां भी अपनी निकटता दिखाई। लेकिन क्या अमेरिका भी एेसा करता है। क्या वह पाकिस्तान के कबायली हिस्सों में घुसकर कार्रवाई नहीं करता है। पाकिस्तान के आतंकी शिविरों से हजारों किलोमीटर दूर स्थित अमेरिका को इतना खतरा हो सकता है तो नजदीकी देश भारत को क्यो नहीं। मेरा मानना है कि भारत को पाकिस्तान से कड़े शब्दों में दो टूक पूछना चाहिए। खुफिया सबूत भी बताती है कि मसूद अजहर आज भी पाकिस्तान में है और वहीं से भारत के खिलाफ आग उगल रहा है।
चांद से लेकर जमीं तक और शिक्षा से लेकर विज्ञान तक में भारत ने एक नई ऊंचाई तय की है। अब हमारी पहचान भी दुनिया के सामने एक शक्तिसंपन्न राष्ट्र के रूप में है। एेसे में अब भारत सरकार को चुपचाप बैठकर पाकिस्तान की कार्रवाई का इंतजार किए बगैर तुरंत सख्त कदम उठाना चाहिए। पाकिस्तान के आतंकी शिविरों पर हवाई हमला करके उसे बर्बाद कर देना चाहिए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को वह गलती नहीं करनी चाहिए जो हमारे देश के नेताओं ने कंधार अपहरण के समय किया था।
जय हिन्द , जय भारत।

Monday, December 1, 2008

यह हल रहा तो ऐसे कितने दरवाज़े बंद हो जायेंगे

भारत अब इन आतंकी वारदातों से नहीं दहलता। इतना विशाल और शक्तिशाली देश भला डर भी नहीं सकता। आतंकी वारदातें भी यहाँ के लिए नई बात नही रह गई। लेकिन केरल की एक घटना ने जरुर पूरे देश को झकझोर दिया। मौत पर राजनीति करने की जो शर्मनाक परम्परा शुरू हुई है यह उसी का रिजल्ट है। मेज़र संदीप के पिता ने जिस तरह केरला के सीएम को खदेडा उसकी ज्यादातर लोगों ने तारीफ ही की। कहीं कोई हादसा हो नेता तो अब सिर्फ़ और सिर्फ़ मुआवजा की ही भाषा बोलने लगे हैं। ट्रेन दुर्घटना हो या किसी की शहादत इन्हे सिर्फ़ यही जुबान बोलने आती है। पक्ष और विपक्ष दोनों पार्टियाँ वही करती हैं। कोई सरकारी धन देता है तो कोई पार्टी फंड से मुआवजा की घोषणा करता है। पिछले ही दिनों बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद एक पार्टी के बडबोलू नेता ने भी कुछ ऐसा ही क्या। इधर शहीद मोहन चंद्र शर्मा के घर पर चेक भेजा और उधर एनकाउंटर पर ही सवाल उठाने लगे। आख़िर यह दोहरा चेहरा कब तक दिखाते रहेंगे आप। शहीद शर्मा के परिज़नों ने भी चेक लौटा दिया और उधर उन्नीकृष्णन के पिता ने सीएम को ही लौटा दिया।
एक कहावत है अति सभी जगह बर्जित है। निश्चित तौर पर यह कहावत पॉलिटिक्स में भी लागु होता है। आप नहीं रुकेंगे तो जनता आपको रोक देगी। आख़िर वही भाग्य विधाता है। समझदारी इसी में है की आप दाता की भूमिका छोड़ याचक का रुख अपनाइए। नहीं तो ऐसे कितने दरवाज़े आपके लिए बंद हो जायेंगे।

धन्यवाद। जय हिंद, जय भारत।