Monday, June 30, 2008

शायद वही पुराने दिन ठीक थे, जब....

कभी कभी यही सोंचता हूँ की वही पुराने दिन ठीक थे। सभी एक साथ मिलकर लिखते थे। हँसी ठिठोली भी चलती रहती थी। हर रोज आनंदवर्धन,राजीव, अंशु, रूबी अरुण, विनय और राकेश से मिलते जुलते रहते थे। संजय त्रिपाठी भी बीच-बीच में हंसाते रहते थे। मैं जितने नामों की चर्चा कर रहा हूँ वो सभी आज इसी दिल्ली में हैं जहाँ मैं हूँ। लेकिन इसे फास्ट लाइफ में कम होता समय कहें या कुछ और, कभी कभार ही किसी से मुलाकात हो पाती है.आनंदवर्धन भाई बहुत व्यस्त हो गए हैं। उनका दफ्तर मेरे घर से बमुश्किल दो किलोमीटर है। लेकिन...उन्हें तो अबतक ब्लॉग पर अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने की भी फुर्सत नहीं मिली। खैर आशा करता हूँ की अपने बड़े भाई जल्द ही निकलकर सामने आएँगे। पटना में वह हमेशा साथ देते थे। पुरी टीम रोज जुटती थी. लेकिन अब हमलोगों के पास तो मिलने जुलने का भी समय कहाँ रह गया है.। इसीलिए लगता है की पटना के वह दिन ही ठीक थे जब अपने बीच मोटा भाई मेरा मतलब राकेश प्रियदर्शी भी होते थे और सभी एक दुसरे के सुख-दुःख और ख़बरों को शेयर करते थे. अभी राकेश मुजफ्फरपुर में दैनिक जागरण के सीनियर रिपोर्टर हैं। बहरहाल उम्मीद करते हैं की यह ब्लॉग फ़िर से अपने साथियों को एक साथ रोज बैठने का तो नहीं लेकिनअपने को जोड़ने का बेहतर मौका जरुर देगा।
धन्यवाद ।

Sunday, June 29, 2008

सचमुच वो एक जुनून था, जो आज भी जारी है

सचमुच वो एक जुनून था। कुछ करने का। एक-दुसरे से आगे निकलने का। बेहतर लिखने का और बेहतरीन खबरें निकालने का। पुरी टीम इसी में लगी होती थी। कोई pmch भाग रहा होता था तो किसी की रेलवे स्टेशन पर नजर होती थी। कई साथी pir और थानों का चक्कर लगते रह्ते थे। कई थाने वाले तो यहाँ तक कहते थे की आपके यहाँ से कई लोग आते हैं। दिनभर भागने-दौड़ने का तो शाम मैं जल्दी ख़बर फाइल करने की चिंता होती थी। अपराध वाले अपनी टीम के साथ तो अन्य साथी अपने गुटों में रहकर न्यूज़ लिखते थे। इसी बीच संपादक जी आ जाते थे और शुरू हो जाती थी पाठशाला। सियाराम जी भी होते थे. राजिव्किशोर, अमलेंदु अस्थाना, राकेश प्रियदर्शी,आनंदवर्धन,रूबी अरुण , नीतिश सोनी, विनय, राकेश वकील साहब और प्रेम से लेकर शंकर प्रसाद, गोविन्द जी तक होते थे। बालन सर के सौजन्य से कई दफा शंकर प्रसाद जी की सांस्कृतिक प्रतिभा से भी हम सभी वाकिफ होते थे. पटना सिटी वाले प्रभात भइया होते थे तो हाथ में हमेशा बैग लटकाए अवधेश बाबा दीखते थे। आजकल वो शायद बिहार्सरिफ मैं हैं। अरे श्शिभुसन भाई की वो आवाज आज भी कानों में गूंजती है। पता नहीं कब उनसे फोन पर भी बात होगी। अमलेंदु भाई का चश्मा और प्रेम की दाढ़ी हमेशा आँखों के सामने रहता है। अंशु सिंह और दीपिका झा की जोड़ी भी अनूठी थी। उधर सुशिल सिंह फीचर सेक्शन में सियाराम जी के साथ लगे रहते थे.अब मैं जिस आदमी की चर्चा करने जा रहा हूँ वो तो सचमुच अद्भुत हैं। वो हैं संजय त्रिपाठी बाबा। अभी बाबा भी दिल्ली में ही सुलभ में कम कर रहे हैं. अंत में मैं ब्लॉग के साथियों की ओरसे देशदीपक भइया और दीपिका जी के मंगलमय जीवन की कामना करता हूँ।

प्रेम भाई सामने आए हैं, आप सबों को बुलाया है

चलिए प्रेम भाई अब ब्लॉग पर सामने आए हैं। उन्होंने अन्य साथियों की तरह ब्लॉग क्रिअशन के लिए धन्यवाद दिया है। साथ ही आप सबों को उन्होंने शादी में बुलाया भी है। चलिए सबसे पहले तो अपने सभी साथियों की तरफ़ से उन्हें दुबारा बधाई दे देते हैं. मैं भी जाने का प्लान बना रहा हूँ। दिल्ली और आसपास के साथी भी जाने की सोच रहे हैं। पटना वाले तो मौजूद ही हैं.

Monday, June 23, 2008

बधाई हो भाई;

अपने फ्रेंच कट दाढ़ी वाले प्रेम भाई को बधाई भइया अब ८ जुलाई के दिन दूल्हा बन रहे हैं। मेरी उनसे बात हुई है। फिलहाल भाई प्रभात ख़बर पटना के बेहतरीन क्राइम रिपोर्टर हैं। उनका नम्बर है.-09431094594 आप तमाम भाइयों को उन्होंने आमंत्रित किया है। जुलाई को नहीं पहुँच पाने वाले १० जुलाई को रिसेप्शन मैं जाइए।

Saturday, June 21, 2008

जिंदगी का अहम् दिन

साथियों,
G4Feb । यानि 4 फरवरी 2000। वैसे तो हर एक दिन कैलेंडर का हिस्सा है लेकिन 4 फरवरी 2000 हम उन सभी साथियों के जीवन का ऐसा अंग बन गया है जिसे मिटाना या भुलाना शायद किसी के लिए संभव नहीं। शायद यह याद करने की भी जरुरत नहीं की इसी दिन हम सभी मिले थे। पटना स्थित 'हिंदुस्तान' के उस 'पाठशाला' में जहाँ गुरु रूप में आदरणीय गिरीश मिश्रा जी हमें सिखाते थे। आज भले अपने ज्यादातर साथी देश के विभिन्न मीडिया समूह में हैं। कोई देश के प्रमुख समाचार चैनेल में है तो कोई बड़े अख़बार में। लेकिन खुशी इसी बात की है की आज भी सभी एक परिवार की तरह जुड़े हैं। पत्रकारिता के इसी आठ साल के सफर मैं मैंने इस जुडाव को और मजबूत बनने के लिए इस ब्लॉग को बनाया है। ब्लॉग का क्रिएशन तभी सफल होगा जब सभी साथी इससे जुडेंगे। सिर्फ़ जुडेंगे ही नहीं बल्कि एक दुसरे की खुशी और गम को मिलकर बाँटेंगे। आइये इसी कड़ी को आगे बढाएं । धन्यवाद ।
pragati Mehta ........