Sunday, June 29, 2008

सचमुच वो एक जुनून था, जो आज भी जारी है

सचमुच वो एक जुनून था। कुछ करने का। एक-दुसरे से आगे निकलने का। बेहतर लिखने का और बेहतरीन खबरें निकालने का। पुरी टीम इसी में लगी होती थी। कोई pmch भाग रहा होता था तो किसी की रेलवे स्टेशन पर नजर होती थी। कई साथी pir और थानों का चक्कर लगते रह्ते थे। कई थाने वाले तो यहाँ तक कहते थे की आपके यहाँ से कई लोग आते हैं। दिनभर भागने-दौड़ने का तो शाम मैं जल्दी ख़बर फाइल करने की चिंता होती थी। अपराध वाले अपनी टीम के साथ तो अन्य साथी अपने गुटों में रहकर न्यूज़ लिखते थे। इसी बीच संपादक जी आ जाते थे और शुरू हो जाती थी पाठशाला। सियाराम जी भी होते थे. राजिव्किशोर, अमलेंदु अस्थाना, राकेश प्रियदर्शी,आनंदवर्धन,रूबी अरुण , नीतिश सोनी, विनय, राकेश वकील साहब और प्रेम से लेकर शंकर प्रसाद, गोविन्द जी तक होते थे। बालन सर के सौजन्य से कई दफा शंकर प्रसाद जी की सांस्कृतिक प्रतिभा से भी हम सभी वाकिफ होते थे. पटना सिटी वाले प्रभात भइया होते थे तो हाथ में हमेशा बैग लटकाए अवधेश बाबा दीखते थे। आजकल वो शायद बिहार्सरिफ मैं हैं। अरे श्शिभुसन भाई की वो आवाज आज भी कानों में गूंजती है। पता नहीं कब उनसे फोन पर भी बात होगी। अमलेंदु भाई का चश्मा और प्रेम की दाढ़ी हमेशा आँखों के सामने रहता है। अंशु सिंह और दीपिका झा की जोड़ी भी अनूठी थी। उधर सुशिल सिंह फीचर सेक्शन में सियाराम जी के साथ लगे रहते थे.अब मैं जिस आदमी की चर्चा करने जा रहा हूँ वो तो सचमुच अद्भुत हैं। वो हैं संजय त्रिपाठी बाबा। अभी बाबा भी दिल्ली में ही सुलभ में कम कर रहे हैं. अंत में मैं ब्लॉग के साथियों की ओरसे देशदीपक भइया और दीपिका जी के मंगलमय जीवन की कामना करता हूँ।

5 comments:

राजीव किशोर said...

र। सब याद है। जो भी इस संस्मरण को पढ़ेगा उसे संघर्ष के वो मुश्किल दिन याद आ जाएंगे। और शायद वो कुछ लिखें भी। वैसे आपके इस पवित्र ब्लॉग पर जी-फोर टीम के सदस्यों का कोई कमेंट नहीं आना अपने आप में चौंकाने वाला है। हम सब एक दिन संवाद-सूत्र थे। और इस बात पर मुझे गर्व है कि उस सूत्र की डोर थामे आज हर कोई अपने सफ़र पर है। लेकिन विनय, राकेश रंजन, आपके और प्रेम के आलावा किसी का संदेश नहीं पढ़ने से थोड़ी निराशा हो रही है। शायद कुछ लोग बीती बातों को भुलाने की नाकाम कोशिश में लगे हों। पर जाने दीजिए। आपका ये ब्लॉग उनका भी भला करे।...और हां, कमेंट देने के लिए वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें, इससे कमेंट देने वाले हतोत्साहित होते हैं।

rakesh ranjan said...

Rajiv bhai ki chinta sahi me ek gambhir bat hai. pragati bhai Jitna sambhav ho us smay ke apne sathio ke name, abhi wah kya kar rahen hain aur unka mob. No. publish karen. Sayad Kuch Khai ko hum log pat saken.

amlendu asthana said...

Ap ki yadon ke cheshmen se us pal ko gungunana sukhad ahsas hai.Hum apke is prayas ki sarahana karte hain.

amlendu asthana said...

pyare pragati
Subhkamna
badhai blog ke liye bhi aur Ma Durga ki subh puja ki bhi.Achanak google per apna Nam dekh ker chaunka. Ye kauthal Ek sukhad ahsas ke sath kathm hua. Ye achchhi suruat hai. Tumahri pariwar banane ki koshish mei Tumhi Mukhiya Ho isliye mai tumhe salam karta hoon. Is Mamle mei tum mere bade bhai ho.
Tumahra bhai AMLENDU ASTHANA

vijay srivastava said...

bhai sahab, aap ka ye prayas ki sangharsh ke dinon ke sathiyon ki toli bane, bhale hi web par, kargar hogi. main aap sabon ke saath to nahi tha, par aa pme se kaiyon ke sath kaam karne, milne ka mauqa mila hai. patna me dainik jagran, rashtriya sahara aur ab e-tv me darbhanga me rahte hue patna ki yaaden romanchit kar jati hain. sangharsh ke un dinon me amlendu asthana khas kareeb rahe. yahan darbhanga me bhi unki nishaniyan mujhe unse jore rahti hain. balki bandhe rahti hain.
vijay srivastava
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