कभी कभी यही सोंचता हूँ की वही पुराने दिन ठीक थे। सभी एक साथ मिलकर लिखते थे। हँसी ठिठोली भी चलती रहती थी। हर रोज आनंदवर्धन,राजीव, अंशु, रूबी अरुण, विनय और राकेश से मिलते जुलते रहते थे। संजय त्रिपाठी भी बीच-बीच में हंसाते रहते थे। मैं जितने नामों की चर्चा कर रहा हूँ वो सभी आज इसी दिल्ली में हैं जहाँ मैं हूँ। लेकिन इसे फास्ट लाइफ में कम होता समय कहें या कुछ और, कभी कभार ही किसी से मुलाकात हो पाती है.आनंदवर्धन भाई बहुत व्यस्त हो गए हैं। उनका दफ्तर मेरे घर से बमुश्किल दो किलोमीटर है। लेकिन...उन्हें तो अबतक ब्लॉग पर अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने की भी फुर्सत नहीं मिली। खैर आशा करता हूँ की अपने बड़े भाई जल्द ही निकलकर सामने आएँगे। पटना में वह हमेशा साथ देते थे। पुरी टीम रोज जुटती थी. लेकिन अब हमलोगों के पास तो मिलने जुलने का भी समय कहाँ रह गया है.। इसीलिए लगता है की पटना के वह दिन ही ठीक थे जब अपने बीच मोटा भाई मेरा मतलब राकेश प्रियदर्शी भी होते थे और सभी एक दुसरे के सुख-दुःख और ख़बरों को शेयर करते थे. अभी राकेश मुजफ्फरपुर में दैनिक जागरण के सीनियर रिपोर्टर हैं। बहरहाल उम्मीद करते हैं की यह ब्लॉग फ़िर से अपने साथियों को एक साथ रोज बैठने का तो नहीं लेकिनअपने को जोड़ने का बेहतर मौका जरुर देगा।
धन्यवाद ।
Monday, June 30, 2008
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6 comments:
मेरे बारे में आप ये नहीं कह सकते। मैं आपसे और आप मुझसे मिलते रहते हैं। वैसे मैं सोच रहा हूं कि एक दिन आप अपने घर एक पार्टी रखें जिसमें सारे पुराने दोस्त इकट्ठा हों। मेरी फ्लैट दूर है लोग आ नहीं पाएंगे। आपका इलाका सब को सूट करेगा। आनंद से ये उम्मीद करना शायद वक्त को बर्बाद करना है।
जीफ़ोरफ़रवरी के बलोग के माध्यम से सच में कई पुरानी यादें जेहन मे घुमने लगा है. इसी ब्लोग के बहाने साथ नहीं होने के बाद भी अपने साथ सामने बैथे होने का एहसास होता है. नयी शुरुआत के लिये विकास के प्रयाय प्रगति को बधाई.
बचपन के दिन भुला न देना आज हँसे कल रुला न देना - कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन - यह हसरत सबकी होती है लेकिन पूरी किसी की नहीं होती. लेकिन डेल्ही और इसके आस पास जी4 के लोगों को इकठा करने के लिए एक बहाना जरुर खोजना चाहिए. राजीव की बात से मैं बिलकुल सहमत हूँ, प्रगति को पहल करनी चाहिए.
आनंदवर्धन आज कल लड़की की तलाश में भटक रहे हैं इसलिए मौका नही मिळ पा रहा है. भाभी के साथ ब्लॉग पर प्रकट हो कर सबको चकित करने की तैयारी है.
g4 ke sathio ke liye platform banane ke liye pragati bhai ko badhai. ye to sach hai ki g4 ke sathi aaj desh ke kone-kone me apne cariar ko sanwar rahe hai. g4 ke member yadi milte julte rahe aur is blog ke madhyam se 2000 ki usi pathshala ki yaad dilate rahe to is fast aur tensionful daily life me kuch to tajgi aayegi. vaise rajiv bhai ka nahi mil pane ka bahana purana hai. unse party lene ki ummid karna webkufi hai. ha party lena ho to unke liye doori koi mayne nahi rakhati. meri aur jyoti (kj) ki na jane kitni party rajiv bhai par due hai. kyon rajiv bhai.....
pragati bhai mere sath bhi jharkhandi bhai ki tarah hindi font ki problem hai. any help...
jai g4
sradhey girish sir kaha karte the ki ek din 4 feb wale group me se koi kahi news editor rahega to koi editor. viswash nahi hota tha tab. aaj karib 8 saal baad aisa lag raha hai ki sir ki baate bilkul sahi saabit hui. 8 saalo me ek aur badlaw ye hua ki ek baar phir ek shakhs ne 4 feb,2000 ke sabhi mitro ko ikathha kar diya.aur wo shakhs hai pragati yaani apna pragati mehta.sabo ko ikatha karne ki to sabhi sochte the, lekin pahal kiya pragati. ye bahut badi baat hai. iske liye pragati ko kewal badhai dene se kaam nahi chalega. khair...abhi mai sabhi mitro ke comments padh raha tha, aankhe bhar aayi meri. komal ki baate to mai bhul nahi sakta.komal ki baat yaad aane pe mai ro padta hu. baad me uski baate likhunga.avi fir bulletin ready karne ja raha hu, isliye baaki baate baad me. rajiv kishor aur pragti ki shikayat phir milegi ki mai kaafi busy hu, lekin kaam bhi to dekhna jaruri hai. girish sir kahte the na ki sabse pahle khabre baasi hoti hain.so mai chala khabro se jujhne.
Pragati ....mere bhai ...aaj pahali dafaa maine is blog ko dekha hai ...guzista dino ki yaadon ne kuch is qadar nam kar diya hai ki filhaal kuch bhi ..kahne ki haalat me nahi hun ...bas sivay isake ki ....Shukriya ......*..*))
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