Thursday, August 7, 2008

अब दूर नहीं रही दिल्ली

आपने भी किसी को यह कहते सुना होगा की- दिल्ली अभी दूर है. नेता जी भी अपने भाषण में विरोधियों के लिए कहते थे अरे उनके लिए अभी दिल्ली दूर है. यानि असंभव टाइप काम को लेकर पहले लोग यही कहते थे। लोगों के नज़र में दिल्ली बहुत दूर थी। लेकिन तेज भागती जिन्दगी ने दिल्ली को बहुत करीब ला दिया। गाँव के रईश माने जाने वाली फॅमिली का अभिषेक भी दिल्ली आ गया तो घरों में काम करने वाली संन्मुनिया काकी का बेटा भी। मैं भी और आप भी। कोई बड़े दफ्तर में बड़ा साहब है तो कोई दिल्ली की सर्दी और धुप में सड़कों पर जद्दोजहद कर रहा है। कुछ यहाँ खर्चे काटकर अब अपने घर भी पैसे भेजने लगा तो कुच्छ अब भी पिता जी से टेलीफोन पर दरख्वास्त कर रहा है...इस महीने कुछ भेज दीजिये, उम्मीद है अगले महीने से आपको नहीं भेजना पड़ेगा । यानि दूर दिखने वाली दिल्ली ही हमारे सबसे करीब आ गई। बिहार से लोग पहले रोजी-रोटी के लिए कोलकाता की रूख़ करते थे। वहां मेहनत मजदूरी करके कमाते थे। लेकिन अब कोलकाता जाने वालों की संख्या कम हो गई। अब लोग दिल्ली की तरफ़ ज्यादा आ रहे हैं। मेरे मुहल्ले के एक पंडित जी भी मुझे अचानक यहाँ दिखे। उन्होंने कहा अब यहीं आ गया हूँ। एक मन्दिर में पुजारी हूँ। यानि दिल्ली में सभी के लिए कुछ न कुछ है। जो आता है वो कमाता और खाता है। लेकिन मेहनत से. कुछ दिन बाद ही मुझे गाँव का ही विनोद मिला। वह मेट्रो रेलवे में काम कर रहा है। यह पूछने पर की तुम भी दिल्ली आ गए उसने कहा की यहाँ काम की कमी नहीं है। कमी है तो मेहनत की। उसने बताया की उसके साथ कई और लोग भी आ गए हैं। उसने यह भी कहा की सिर्फ़ बिहार से ही नहीं कई दुसरे स्टेट के लोग भी यहाँ काम कर रहे हैं. तब मुझे यही लगा की सचमुच दिल्ली कितनी नजदीक आ गई। कोई समय था जब बिहार से दिल्ली आने के लिए इक्का-दुक्का ट्रेन ही होती थी। तूफान एक्सप्रेस, जनता एक्सप्रेस या जयंती जनता एक्सप्रेस का ही महत्व था। एक-दो दिन पहले भी रिजर्वेशन मिल जाता था। लेकिन अब तो रोजाना दिल्ली की दर्जनों ट्रेन है फ़िर भी रिजर्वेशन नहीं मिल पाता है. अब तो लोग यही कह रहे हैं की दिल्ली कितनी नजदीक है। सचमुच दिल्ली की दरियादिली ने इसे लोगों के बहुत करीब ला दिया। आख़िर लाये भी क्यों न यह देश की राजधानी जो है। देश के हर हिस्से के लोगों को यहाँ से जुड़ने का अधिकार है।

3 comments:

raja said...

ek sachchai hai bhai

kolkata jane ke bad ghar ki auroto ki halat ko byan karne ke liye bhikhari thakur ne videshiya ki rachna kar di...

Delhi ek mauka deta hai mehnat karne ke sath hausala rakhne walon ko.

thanks for remember

Ashok Pandey said...

प्रगति भाई, आपसे भेंट तो नहीं है, लेकिन आपके बारे में पटना में हिन्‍दुस्‍तान में राजेश जी अक्‍सर चर्चा किया करते थे। आपके G4Feb के राजेश जी, देशदीपक जी, दीपिका जी, जितेन्‍द्र ज्‍योति जी, नवीनचन्‍द्र मनोज जी, राजीव किशोर जी आदि के साथ वहां डेस्‍क पर काम करने में काफी मजा आता था। ये दोस्‍त पत्रकारिता की तरह ब्‍लॉगजगत में भी अपनी सक्रियता का अहसास कराते तो क्‍या बात थी।

Rajesh Kumar said...

Ashok pandey ji aapki is blog par sakriyata kabile tarif hai. aur aapka kam kaisa chal raha hai. kabhi patna aaiye to apse batchit ho. apko dekhe bhi bhi kafi samay ho gaya. ummid hai jald hi apka chehra dekhne ko milega.