Saturday, August 23, 2008

बाढ़ के वो खौफनाक मंजर...

यमुना की बाढ़ ने मुझे उत्तर बिहार की बाढ़ की याद दिला दी। वो दर्दनाक और खौफनाक मंजर मेरे आंखों के सामने आज फ़िर घुमने लगा। गाँव-गाँव को लीलने को आमादा बागमती नदी । मरने वालों की हर दिन लम्बी होती सूची । भूख से बिलखते बच्चे और साफ पानी के लिए तरसता गला। इधर हर घंटे नदी में बढ़ता पानी तो उधर हर घड़ी बढती चिन्ता। शहर से हर छन टूटता संपर्क तो इधर बीमारी से कराहता जीवन। पिछले कई सालों की तरह २००६ में भी मैं बाढ़ की रिपोर्टिंग करने सीतामढी की तरफ़ गया। सुबह के दस बजे थे। मैं और संजय गुप्ता, फोटोग्राफर, मुजफ्फरपुर से बाइक से सीतामढी जाने वाली एनएच ७७ पर निकले। कुछ किलोमीटर के बाद से ही पानी से संघर्ष शुरू हो गया। अलकतरा, पानी और कभी जबरदस्त कीचड़ से होते हुए हम किसी तरह कटौझा तक पहुंचे। आगे एनएच ७७ पर चार फुट से ज्यादा नदी की धार बह रही थी। दोनों ओर गाड़ियों की लम्बी कतार लगी थी। वहीँ सड़क किनारे बाइक छोड़ दी। जूते वही उतारकर जींस को फोल्ड करना पड़ा। फ़िर हम लोग ट्रैक्टर में सवार हुए। एक किलोमीटर तक की ट्रैक्टर यात्रा ने रुला दिया। उसके बाद फ़िर नाव पर सवार हुए। पेड़ पौधों से टकराता हुआ नाव आगे चला। नदी की बहाव देखकर साँस अटक जा रही थी। करीब २० मिनट के बाद नाविक ने एक गाँव के किनारे लाया। कदम निचे रखते ही पैर जमीं में धँसने लगा। फ़िर हम दोनों एक दुसरे को थामते हुए किसी तरह आगे बढे। सामने से एक दूसरा नाव आता दिखा जिसमे सवार महिलाएं कहीं दूर से पीने का पानी लेकर आ रही थीं। तब तक गाँव के कई लोग इकठा हो गए। कौन हैं और कहाँ से आए हैं, यह जानते ही लोग आपबीती सुनाने लगे। किसी का पुरा घर बह गया तो किसी का पुरा अनाज ही बर्बाद हो गया। किसी का बेटा पानी में डूबकर मर गया। घरों में चार-चार फुट पानी है। अब तक कोई सरकारी राहत नहीं मिली है। नाव और राहत सामग्री की बात तो छोडिये कोई अधिकारी अभी तक देखने भी नहीं आया है। बगैर दवा और इलाज के लोग मर रहे हैं। सांप काटने की घटना बढ़ गई है। सीरियस बीमार लोगों की जान गाँव के उसी निम्-हकीम पर छोड़ दी जाती है जिसे पकड़ने के लिए सरकार हमेशा अभियान चलाती रहती है। जलस्तर और बढ़ते ही लोग गाँव छोड़ वहीँ सड़क या बाँध पर आ जाते हैं। फ़िर नदी की विकराल धारा को ही देखते देखते कई दिन गुजर जाते हैं।
बाढ़ की त्रासदी : भाग एक

2 comments:

Udan Tashtari said...

वाकई खौफनाक मंजर.

Ashok Pandey said...

विडंबना तो यह है कि जो बाढ़ आम जन की तबाही का मंजर बनती है, वही नेताओं व अफसरों के लिए कामधेनु साबित होती है। मुझे तो लगता है कितने लोग इंतजार में रहते होंगे कि बाढ़ आए और उनकी अकूत कमाई का स्‍कोप बढ़े।