देर से ही सही लेकिन मायावती ने अपना फ़ैसला बदलकर एक अच्छी पहल की है। राजनीति तो होनी ही चाहिए। लेकिन स्वस्थ और पोसिटिव। रेल कोच फैक्ट्री कहीं बने लेकिन तरक्की तो उत्तरप्रदेश की ही होगी। यदि स्टेट में यह फैक्ट्री नहीं लग पाती तो इसका कहीं न कहीं नुकसान मायावती जी को भी उठाना पड़ता। अब नैनो प्लांट को ही लीजिये। ममता बनर्जी के अड़ियल रुख के चलते टाटा को बंगाल से पीछे हटना पड़ा। यह बंगाल सरकार की नाकामी तो है ही ममता बनर्जी की भी हार है। निश्चित तौर पर जमीन देने वाले किसानों को उचित मुआवजा मिलना चाहिए था। ममता जी इस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करतीं लेकिन एकदम से रास्ता ही रोक देना ग़लत है। ऐसे कदमों का आम जनता को भी विरोध करना चाहिए।
दरअसल, कुछ राजनेता वोट की ग़लत राजनीति कर जनता को गुमराह करने लगे हैं। कहीं जमीन के नाम पर तो कहीं बाटला हाउस एनकाउंटर के नाम पर। नैनो के मुद्दे पर बंगाल को एक झटका देने के बाद अब ममता जी यहाँ पहुंचीं हैं। नैनो मामले में उनका साथ देने सपा नेता अमर सिंह बंगाल गए थे। अब सपा नेता बाटला पहुंचे हैं तो ममता जी का आना फ़र्ज़ बनता है। खैर बाटला हाउस का मामला जांच से जुडा है। इन नेताओं को घटिया राजनीति करने के बजाय निष्पक्ष समिति से इसकी जांच की मांग करनी चाहिए। आख़िर उन्हें भी समझना होगा की जब देश रहेगा तभी राजनीति भी चलेगी। इसीलिए देश के मुद्दे पर कोई कदम उठाने से पहले नेताओं को अपनी जिम्मेवारी समझनी चाहिए....राजनीति हमेशा विकाश के लिए कीजिये, विनाश के लिए नहीं.
Sunday, October 19, 2008
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1 comment:
जमीन वापस लेने के फैसले से मायावती और बसपा की छवी खराब हुई। इलाहाबाद हाईकोर्ट के यथा स्थिति बनाए रखने के फैसले के बाद मायावती के सामने कोई रास्ता बच नहीं गया था। सोनिया गांधी के हाथ बैठे बिठाए एक मुद्दा मिल गया। मायावती ने तुरंत इस बात के समझा और फैसला बदल दिया।
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