Friday, August 29, 2008

भोज घड़ी कोहडा .....

सचमुच यह वही कहावत है ' भोज घड़ी कोहडा रोपने वाली '। यानि जब पार्टी में सभी खाने आ जायें तो फ़िर खेत में सब्जी उपजाने की बात हो । इन दिनों बिहार के बाढ़ में कुछ ऐसा ही दिख रहा है। कोसी की विकराल भयावह धारा सभी को लीलने को बेताब है। कई लोग डूबकर मर चुके हैं। लाखों लोग अब भी जान बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। अभी जरुरत है बगैर एक पल भी गवाएं तुंरत ज्यादा से ज्यादा लोगों को मौत के मुंह से निकलने की। लेकिन दुखद यह की ऐसे समय में भी नेता टाइप लोग एक दुसरे पर आरोप लगाने में व्यस्त हैं। कोशी हाई डैम परिय्जना की बात की जाने लगी है. कुछ कह रहे हैं की हाई डैम नेपाल से जुडा मामला है जिसमे राज्य सरकार कुछ नहीं कर सकती है। यानि जब बाढ़ आई तो इन्हे कोशी हाई डैम सूझने लगा। इतने सालों तक किसी ने उधर देखना भी मुनासिब नहीं समझा था। जब कोशी अपने रस्ते बह रही थी। जब आपके हाथ मौका था तो आपने बैराज को दुरुस्त करने की कोई पहल नहीं की। अभी जब जरुरत लोगों को निकलने की है तो आपको बैराज बनाने की यद् आ रही है..मेरे नेताओं प्लीज़ अभी अपना सारा ध्यान मौत के मुंह में फंसे हमारे बच्चों और अन्य लोगों को निकलने में लगाइए। एक-दुसरे पर आरोप लगाने में समय जाया मत कीजिये... राहत कार्य चलाना सरकार की जिम्मेवारी है लेकिन हम सभी इसमे सहयोग कर सकते हैं. आसपास जिले के लोग भी रहत कार्य बाँट रहे हैं कृपया आप भी साथ दीजिये।
धन्यवाद।

Wednesday, August 27, 2008

भगवान के लिए अभी पॉलिटिक्स मत कीजिये

' बिहार का शोक ' कोसी फिर अपने प्रलयंकारी रूप में सामने है। सैकडों गाँव और लाखों लोग भयावह बाढ़ में फंसे हैं। दहाड़ मारती कोसी की धारा में फंसे लोगों का एक-एक पल बेशकीमती है। थोडी लापरवाही या देरी उनके जान का दुश्मन बन सकता है. भूखे-प्यासे उन लोगों की हर एक नज़र सरकार की ओर उम्मीद लगाये बैठी है। किसी का बेटा तो किसी ने अपना सुहाग खो दिया है। आँख के सामने बच्चे भूख और प्यास से तड़प रहे हैं। न खाने को एक दाना है और न पीने को साफ पानी। राज्य सरकार केन्द्र पर तो केन्द्र से ताल्लुक रखने वाले नेता राज्य सरकार पर आरोप लगा रही है। मैं अपने राज्य के नेताओं से यही गुजारिश करता हूँ की भगवान के लिए इस समय पॉलिटिक्स छोड़ कर उनके लिए कुछ कीजिये। यह समय पॉलिटिक्स करने का नहीं है. देश और दुनिया के लोग उस बाढ़ की एक फोटोग्राफ देखकर सिहर उठते हैं। भयावह तस्वीर आंखों के सामने होती है। ऐसे में सोचिये उन बेचारों की क्या हालत होगो जो मौत से जद्दोजहद कर रहे हैं. ऐसे समय में किसी जाँच आयोग और लम्बी चौडी घोषणाओं की भी जरुरत नहीं है। अभी तो सभी का प्रयास होना चाहिए की फंसे हुए लोगों को सही-सलामत कैसे निकाला जाए।
मैं खासकर बिहार के चीफ मिनिस्टर नीतिश कुमार और रेल मंत्री लालूं प्रसाद से यह गुजारिश करता हूँ की इस दुःख की घड़ी में प्रदेश की जनता के लिए मिलजुल कर कोई ठोस कदम उठाइए। साथ ही ऊपर वाले से यह कामना करता हूँ की बाढ़ में फंसे लोगों को जल्द से जल्द मदद मिले और उनकी जिंदगी भी पटरी पर लौटे।

धन्यवाद।

Saturday, August 23, 2008

बाढ़ के वो खौफनाक मंजर...

यमुना की बाढ़ ने मुझे उत्तर बिहार की बाढ़ की याद दिला दी। वो दर्दनाक और खौफनाक मंजर मेरे आंखों के सामने आज फ़िर घुमने लगा। गाँव-गाँव को लीलने को आमादा बागमती नदी । मरने वालों की हर दिन लम्बी होती सूची । भूख से बिलखते बच्चे और साफ पानी के लिए तरसता गला। इधर हर घंटे नदी में बढ़ता पानी तो उधर हर घड़ी बढती चिन्ता। शहर से हर छन टूटता संपर्क तो इधर बीमारी से कराहता जीवन। पिछले कई सालों की तरह २००६ में भी मैं बाढ़ की रिपोर्टिंग करने सीतामढी की तरफ़ गया। सुबह के दस बजे थे। मैं और संजय गुप्ता, फोटोग्राफर, मुजफ्फरपुर से बाइक से सीतामढी जाने वाली एनएच ७७ पर निकले। कुछ किलोमीटर के बाद से ही पानी से संघर्ष शुरू हो गया। अलकतरा, पानी और कभी जबरदस्त कीचड़ से होते हुए हम किसी तरह कटौझा तक पहुंचे। आगे एनएच ७७ पर चार फुट से ज्यादा नदी की धार बह रही थी। दोनों ओर गाड़ियों की लम्बी कतार लगी थी। वहीँ सड़क किनारे बाइक छोड़ दी। जूते वही उतारकर जींस को फोल्ड करना पड़ा। फ़िर हम लोग ट्रैक्टर में सवार हुए। एक किलोमीटर तक की ट्रैक्टर यात्रा ने रुला दिया। उसके बाद फ़िर नाव पर सवार हुए। पेड़ पौधों से टकराता हुआ नाव आगे चला। नदी की बहाव देखकर साँस अटक जा रही थी। करीब २० मिनट के बाद नाविक ने एक गाँव के किनारे लाया। कदम निचे रखते ही पैर जमीं में धँसने लगा। फ़िर हम दोनों एक दुसरे को थामते हुए किसी तरह आगे बढे। सामने से एक दूसरा नाव आता दिखा जिसमे सवार महिलाएं कहीं दूर से पीने का पानी लेकर आ रही थीं। तब तक गाँव के कई लोग इकठा हो गए। कौन हैं और कहाँ से आए हैं, यह जानते ही लोग आपबीती सुनाने लगे। किसी का पुरा घर बह गया तो किसी का पुरा अनाज ही बर्बाद हो गया। किसी का बेटा पानी में डूबकर मर गया। घरों में चार-चार फुट पानी है। अब तक कोई सरकारी राहत नहीं मिली है। नाव और राहत सामग्री की बात तो छोडिये कोई अधिकारी अभी तक देखने भी नहीं आया है। बगैर दवा और इलाज के लोग मर रहे हैं। सांप काटने की घटना बढ़ गई है। सीरियस बीमार लोगों की जान गाँव के उसी निम्-हकीम पर छोड़ दी जाती है जिसे पकड़ने के लिए सरकार हमेशा अभियान चलाती रहती है। जलस्तर और बढ़ते ही लोग गाँव छोड़ वहीँ सड़क या बाँध पर आ जाते हैं। फ़िर नदी की विकराल धारा को ही देखते देखते कई दिन गुजर जाते हैं।
बाढ़ की त्रासदी : भाग एक

Sunday, August 10, 2008

सचमुच कमाल के हैं आप

सचमुच कमाल हैं आप। दौड़ती-भागती टीवी की लाइफ में भी बिल्कुल अलग । बोलने का ख़ुद का तरीका। सलीके के शब्द और कायदे का आलेख। चेहरे पर गंभीरता और आवाज़ में दम । और वही सटीक तिपन्नियाँ। नवाबों के शहर को तो आप पर नाज़ है ही, सभी हिन्दुस्तानियों को भी आप पर फक्र है। टीवी की पत्रकारिता में जहाँ लोग ज्यादा समय हंसगुल्ले पर दे रहे है। हंसने-हँसाने का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। वहीँ आप की ज्यादातर गंभीर रिपोर्ट आज भी जमीं से ही जुड़े होते हैं। चाहे आतंकवाद के खिलाफ आपकी रिपोर्टिंग हो या फिर राजनेता अजित सिंह के पाला बदलने की आपके आलेख आज भी दिमाग में हैं। कभी कहीं टीवी के खास रिपोर्टरों की चर्चा हो रही हो तो आप का नाम तेजी से सुनाई देने लगता है। मैं अपने कुछ पत्रकार दोस्तों के बीच आपकी तारीफ अभी सुरु किया ही था की एक दोस्त ने आपकी सालों पुरानी कई आलेख को यूँ ही जुबान पर बोल गए। तब भी मेरी जुबान पर यही आया की सचमुच कमाल के हैं आप।
वो पत्ते बीन रहे एक गरीब बुजुर्ग के बारे में आपका आलेख आज भी मुझे पुरी तरह याद है। वो पीपल के पेड़ के चक्कर काटते बच्चों को दिखाते हुए आपने कहा था की ये एक दुसरे की शर्ट पकड़ कर रेलगाडी बनते हैं. मैं देखता हूँ की इंजन तो हर रोज बदलता है लेकिन गार्ड का अन्तिम डिब्बा हर रोज एक ही लड़का बनता है। क्योंकि उसके पास शर्ट नहीं है। वाह.....क्या गजब की बात कही है। ये अन्तिम पंक्ति ही पुरी बात कह गया। सचमुच ऐसी भावुक रिपोर्टिंग आप जैसा गंभीर शख्सियत ही कर सकता है। पिछले दिनों भी आपको एक अवार्ड मिला था। आज फ़िर आपके नाम बेस्ट रिपोर्टर का अवार्ड आया है। अपने साथियों की तरफ़ से आपको कोटि-कोटि बधाई। साथ ही ऊपर वाले से यह विनती करते हैं की मीडिया जगत को ऐसे कई कमाल खान दे जो हर किसी की आवाज़ बने।
धन्यवाद।

Friday, August 8, 2008

काश एक अपना भी घर होता

देश की राजधानी दिल्ली पर हमसभी को नाज़ है। दिल्ली में अपना एक बंगला हो यह सभी चाहते हैं। लेकिन महंगाई के इस दौर में कुछ ही ऐसे खुशनसीब होते हैं जिनके सपने पुरे होते हैं। निजी बिल्डरों के फ्लैट के दाम सुनकर तो उस बारे में सोचने की भी हिम्मत नहीं हो पाती है . ख़ासकर प्रिंन्ट मीडिया में कम करने वाले ज्यादातर लोगों के साथ तो ऐसा ही है. अब दिल्ली में मकान का किराया भी कम नहीं रहा। ऐसे में दिल्ली विकाश प्राधिकरण की ये आवास योजना हम जैसों के सपनों को पुरा करने में कुछ हद तक सहायक हो सकती है। इसीलिए मैं आपसबों से भी आग्रह करता हूँ की यदि दिल्ली में आशियाने का ख्वाब पाल रखे हैं तो प्राधिकरण की इस योजना को जरुर आजमाइए। देश का कोई भी नागरिक आवेदन कर सकता है। इस योजना के तहत दिल्ली के कुछ हिस्सों में सात लाख से लेकर सत्ततर लाख रूपये तक के फ्लैट हैं. थोडी परेशानी आवेदन के साथ डेढ़ लाख रूपये को लेकर है। लेकिन कुछ बैंक आपकी इस परेशानी को भी दूर करने की सोंच रहे हैं। तो आइये आवेदन करने की हिम्मत करें।
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कहाँ हैं फ्लैट- पीतमपुरा, द्वारका, मोतिआखान, पश्चिम बिहार, दिलशाद गार्डन, नरेला, प्रिरागार्ही, रोहिणी, शालीमार बाग़, वसंत कुञ्ज।
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कैसे-कैसे फ्लैट्स- वन रूम, डबल रूम, तीन रूम फ्लैट।
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आप कर सकते हैं आवेदन
- भारत के नागरिक हैं
- परिवार के एक ही सदस्य करें आवेदन
- आवेदक के नाम पहले से दिल्ली प्राधिकरण का फ्लैट न हो
- आवेदक के पास पैन नंबर हो
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क्या और कबतक
- ६ अगस्त से फॉर्म बिक रहा है जो १६ सितम्बर तक मिलेगा।
- उम्मीद है दिसम्बर तक आवेदन की छंटनी हो जायेगी
- उम्मीद है जनवरी में फ्लैट आवंटन हो जाए
- एस्सी के लिए १७.५ फीसदी, एसटी के लिए ७.५ फीसदी, १ फीसदी शहीद सैनिकों के परिजन और १ फीसदी पूर्व सैनिकों के लिए रिज़र्व है।
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फॉर्म यहाँ मिल रहा है
- 100 रूपये में फार्म मिल रहा है।
- दिल्ली और आसपास के कुछ बैंक जैसे एच्दिएफ्सी, केनेरा और कई बैंक ।
- आप फॉर्म यहाँ से भी डाउनलोड कर सकते है। www.dda.org.in
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कहाँ से आएगी इतनी रकम
आवेदन के समय डेढ़ लाख रूपये जमा करना है। इसे लेकर कुछ लोग परेशान हैं। लेकिन ज्यादा परेशान होने की जरुरत नहीं है। कुछ सरकारी और निजी बैंकों ने इसे फाइनेंस करने की योजना बनाई है। इसके लिए आपको पॉँच हजार या सात हजार रूपये बैंक में जमा करने होंगे। फ़िर बैंक आपकी ओर से डेढ़ लाख रूपये जमा कर देगी। फ्लैट निकल गया तो आपको डेढ़ लाख जमा करने होंगे नहीं तो ये पाँच या सात हजार रुपया आपका डूब जाएगा।
फ्लैट निकलने की इस्थिति में भी आप बैंक से लोन ले सकते हैं।
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ज्यादा जानकारी के लिए यहाँ से संपर्क करें
www.dda.org.in
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धन्यवाद।

Thursday, August 7, 2008

अब दूर नहीं रही दिल्ली

आपने भी किसी को यह कहते सुना होगा की- दिल्ली अभी दूर है. नेता जी भी अपने भाषण में विरोधियों के लिए कहते थे अरे उनके लिए अभी दिल्ली दूर है. यानि असंभव टाइप काम को लेकर पहले लोग यही कहते थे। लोगों के नज़र में दिल्ली बहुत दूर थी। लेकिन तेज भागती जिन्दगी ने दिल्ली को बहुत करीब ला दिया। गाँव के रईश माने जाने वाली फॅमिली का अभिषेक भी दिल्ली आ गया तो घरों में काम करने वाली संन्मुनिया काकी का बेटा भी। मैं भी और आप भी। कोई बड़े दफ्तर में बड़ा साहब है तो कोई दिल्ली की सर्दी और धुप में सड़कों पर जद्दोजहद कर रहा है। कुछ यहाँ खर्चे काटकर अब अपने घर भी पैसे भेजने लगा तो कुच्छ अब भी पिता जी से टेलीफोन पर दरख्वास्त कर रहा है...इस महीने कुछ भेज दीजिये, उम्मीद है अगले महीने से आपको नहीं भेजना पड़ेगा । यानि दूर दिखने वाली दिल्ली ही हमारे सबसे करीब आ गई। बिहार से लोग पहले रोजी-रोटी के लिए कोलकाता की रूख़ करते थे। वहां मेहनत मजदूरी करके कमाते थे। लेकिन अब कोलकाता जाने वालों की संख्या कम हो गई। अब लोग दिल्ली की तरफ़ ज्यादा आ रहे हैं। मेरे मुहल्ले के एक पंडित जी भी मुझे अचानक यहाँ दिखे। उन्होंने कहा अब यहीं आ गया हूँ। एक मन्दिर में पुजारी हूँ। यानि दिल्ली में सभी के लिए कुछ न कुछ है। जो आता है वो कमाता और खाता है। लेकिन मेहनत से. कुछ दिन बाद ही मुझे गाँव का ही विनोद मिला। वह मेट्रो रेलवे में काम कर रहा है। यह पूछने पर की तुम भी दिल्ली आ गए उसने कहा की यहाँ काम की कमी नहीं है। कमी है तो मेहनत की। उसने बताया की उसके साथ कई और लोग भी आ गए हैं। उसने यह भी कहा की सिर्फ़ बिहार से ही नहीं कई दुसरे स्टेट के लोग भी यहाँ काम कर रहे हैं. तब मुझे यही लगा की सचमुच दिल्ली कितनी नजदीक आ गई। कोई समय था जब बिहार से दिल्ली आने के लिए इक्का-दुक्का ट्रेन ही होती थी। तूफान एक्सप्रेस, जनता एक्सप्रेस या जयंती जनता एक्सप्रेस का ही महत्व था। एक-दो दिन पहले भी रिजर्वेशन मिल जाता था। लेकिन अब तो रोजाना दिल्ली की दर्जनों ट्रेन है फ़िर भी रिजर्वेशन नहीं मिल पाता है. अब तो लोग यही कह रहे हैं की दिल्ली कितनी नजदीक है। सचमुच दिल्ली की दरियादिली ने इसे लोगों के बहुत करीब ला दिया। आख़िर लाये भी क्यों न यह देश की राजधानी जो है। देश के हर हिस्से के लोगों को यहाँ से जुड़ने का अधिकार है।