गुड मोर्निंग, मैं प्रभुराम आपका पड़ोसी। और ये मेरी बीबी नाथूराम . आज ही यहाँ आया हूँ। एक अमेरिकी कंपनी में हूँ। इसी सेक्टर में मेरा कारपोरेट ऑफिस है। हम दोनों वहीँ जॉब करते हैं। इसीलिए सोचा यहीं फ्लैट किराये पर ले लूँ। बहुत स्वागत है आपका। मैं ज्वाला प्रसाद हूँ। लेकिन आपने क्या कहा मेरी बीबी....। जी हम दोनों ने शादी कर ली है। एक दूजे को जान से ज्यादा चाहते हैं। कहकर दोनों ऑफिस निकल गए। लेकिन फौज से सेवानिवृत ज्वाला जी को भला ये बात कैसे हजम होती। भला दो लड़के आपस में कैसे शादी कर सकते हैं। ज्वाला जी ने भी अपने दरवाजे की कुण्डी लगाई और डायनिंग हॉल में निढाल बैठ सोचने लगे। पुराने ख़यालात की उनकी पत्नी भी तब तक पूजापाठ निपटा चुकी थी। आते ही कहा कौन था। किसने घंटी बजाई थी। ज्वाला बाबु ने उनकी ओर देखा और बोले-नए पड़ोसी हैं। प्रभुराम और नाथूराम। यहीं एक कंपनी में काम करते हैं। नाम सुनते ही उनकी पत्नी शारदा ने कहा क्या सोसाइटी वालों ने बैचलर को मकान दे दिया। ये कैसे किया। मेरे घर में जवान लड़कियां है। भला बगल वाले फ्लैट में बैचलर कैसे रह सकता है। यह सब चुपचाप सुन रहे ज्वाला जी कहते हैं अरे बैचलर तो है लेकिन .... अरे लेकिन क्या। अच्छा बाद में बताऊंगा। अरे अभी बताइए। परेशान ज्वाला जी गरम हो गए। कहा अरे भाई फ़िर से एक बार मुझे कन्फर्म हो लेने दो। इसके बाद ही कुछ बताऊंगा। उनकी पत्नी और झुंझला गई। पहले बात तो बताइए कन्फर्म बाद में कीजियेगा। ऐसी कौन सी बात है की आप इतना परेशान हो गए। कोई चारा नहीं देख ज्वाला जी बोले अरे क्या कहें। बैचलर तो है लेकिन कह रहे थे की दोनों मियां-बीबी हैं। क्या दो लड़के भला मियां-बीबी कैसे हो सकते हैं। आपका दिमाग तो ठीक हैं न। अरे यही सुनकर तो मेरा दिमाग घूम गया है। भला दो लड़के मियां-बीबी कैसे हो सकते हैं। हे भगवान् । इतने में उनकी बड़ी बिटिया रीमा आ गई। क्यों भगवान्-भगवान् हो रही है। ऐसा क्या हो गया। अरे पापा सुना नए पड़ोसी आए हैं। क्या करते हैं। अंकल, आंटी ही हैं की बच्चे भी। अरे तुम्हे क्या लेना देना कोई भी हो। अरे भाई मुझे लगा की बड़े बच्चे होंगे तो मेरे फ्रेंड बनेंगे। छोटे बच्चे होंगे तो और मजे से टाइम पास होगा। इतने में उसकी मम्मी बोली। अरे कोई नहीं है दो लड़के कहाँ से आ गए हैं। ये सोसाइटी वालों ने ठीक नहीं किया। लेकिन तुम्हें इससे क्या है। कोई हो। अगले दिन यह समस्या लेकर ज्वाला जी अपने एक सेवानिवृत बॉस के यहाँ पहुंचे।देखते ही बॉस ने बैठने को तो कहा लेकिन कुछ सोच में तल्लीन दिखे। चेहरे पर चिंता साफ दिख रही थी। खैर उन्होंने रुमाल से पसीना साफ करते हुए कहा और ज्वाला बताओ कैसे आना हुआ। ज्वाला जी ने पहले उनकी चिंता के बारे में पूछा। उन्होंने कहा अरे क्या कहूँ एक पड़ोसी से परेशान हूँ,। मेरे बगल वाले फ्लैट में दो लड़कियां आई हैं। सुबह दोनों ने मुझे नमस्ते अंकल कहा। तबतक तो ठीक था लेकिन इसके बाद जो कहा वो आज तक मेरे दिमाग में नाच रहा है। जानते हो ज्वाला वो दोनों कोई पच्चीस साल की होंगी। टेंशन यह है की मैंने पूछा की तुम दोनों अकेली रहोगी की घर से कोई और आएँगे। इतने में उन दोनों ने कहा अब कौन आयेंगे अंकल। हम दोनों मियां-बीबी हैं। हमने शादी कर ली है। तुम ही बताओ ज्वाला भला ऐसा कभी हो सकता है की दो लड़कियां एक-दुसरे की पति पत्नी हो।बॉस मैं क्या कहूँ मैं भी तो वही आपसे पूछने आया था की क्या दो लड़के आपस में पति-पत्नी हो सकते हैं। क्या मतलब। बॉस जैसे आपके पड़ोस में दो लड़कियां आपके लिए टेंशन बनी हैं उसी तरह मेरे पड़ोस में दो लड़के टेंशन बन गए हैं। फिर क्या दोनों बुढ्ढे अपनी पुरानी संस्कृति के पन्ने खोलने लगे। पति-पत्नी, वो अग्नि साक्षी और शादी। अब तो नया जमाना है। शादी के लिए भला लड़के की क्या जरुरत। लड़का-लड़का से और लड़की-लड़की से ही शादी कर रहे हैं। लेकिन ज्वाला क्या यही समाज है। इसी के लिए हमने संघर्ष किया। भला इन बच्चों का वंश कैसे चलेगा। क्या इनके माता-पिता सहमत होंगे। उनके दिल पर क्या बीतेगी। एक हमारा समाज है की लड़की से दोस्ती पर भी नज़र नहीं उठती थी घरवालों के सामने। और ये भला इतनी बड़ी बात... इन्हे कौन समझायेगा की यही जिंदगी नहीं है। खाने-पिने-भोगने से आगे भी कुछ है..समाज को भी कुछ देना होगा जिसने तुम्हे बहुत कुछ दिया है। उस पिता के अरमान और माता की चाहत का क्या होगा जो तुम्हे चम्मच में दूध पिलाने से लेकर चंदा मामा दिखाने तक कुछ सपने देखती थीं। कुछ लिया है तो देना भी सीखो...
धन्यवाद.
3 comments:
अच्छा है। ये बढ़िया रही भाई।
कहानी के नजरिए से फेटेन्सी की शुरुआत ठीक है. मगर ज़माना यही तक सीमित नही है. कहानी जैसा कि मुझे महसूस होता है, अधुरी है, कहानी पूरा हो तो शायद बहुत कुछ सामने आयेगा. जिन्दगी के कुछ सच्चाई और भी है. आज इतना ही...
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