Wednesday, July 30, 2008
राजिव्किशोर की माता जी का निधन
Friday, July 25, 2008
भाई, वो डॉक्टर साहब कहाँ चले गए
Thursday, July 17, 2008
सुप्रतिम को देखिये, कभी हिम्मत मत हारिये..
सचमुच इसे सुप्रतिम की मौत पर जीत ही कहेंगे। दिल्ली की इस घटना को जिसने भी देखा वो दहल गया, लेकिन उस हिम्मतवाले को दाद दीजिये जिसने उस रड को इतने देर तक बर्दास्त किया। एक रड पहले कार में घुसता है फिर वह उसके पेट के उपरी हिस्से को भेदते हुए पीठ को पार कर जाता है। निश्चित तौर पर यह देखने वालों को भी हिलाने वाला था, लेकिन उसने अपने को पुरी तरह संभाले रखा। जहाँ एक छोटी गोली और एक छोटा चाकू भी आदमी की जान ले लेता है, वहां सुप्रतिम का अब भी सलामत रहना तो यही कहता है.....शाबाश आपके हिम्मत की और शुक्रिया उपरवाले का। साथ ही शुक्रिया उन डॉक्टरों का जिन्होंने भगवान् जैसा काम किया। इसीलिए कहा जाता है की आदमी को मरते दम तक हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। हो सकता है आपको सफलता तब मिले जब आप आखिरी छोर तक पहुँच जायें.....सुप्रतिम से यही सिख लीजिये। कभी हिम्मत मत हारिये..
धन्यवाद.
Friday, July 11, 2008
अरे ये क्या हुआ....
बेहद दर्दनाक, कोमल जी अब हमारे बिच नहीं रहे
अपने साथी कोमल जी अब हमारे बिच नहीं रहे। आजमगढ़ के करीब एक रोड एक्सीडेंट में उनकी जीवन इहलीला समाप्त हो गई। गुरुवार की देर रात वह अपने कुछ साथियों के साथ वाराणसी से लौट रहे थे की रास्ते में एक ट्रक से उनकी गाड़ी की टक्कर हो गई। इस दुर्घटना में उनके साथ ही दो अन्य की स्पॉट डेथ हो गई। इसमे अमरउजाला गोरखपुर के फोटोग्राफर वेदप्रकाश भी शामिल हैं। चार अन्य लोग अभी अस्पताल में भरती हैं। कोमल जी फिलहाल अमरउजाला गोरखपुर में कार्यरत थे। इसके पहले वह हिंदुस्तान मुजफ्फरपुर और हिंदुस्तान पटना में रह चुके है। वह करीब तैंतीस साल के थे. उनके परिवार में उनकी पत्नी, दो छोटे बच्चे और एक छोटा भाई है। वाराणसी के कई अख़बारों में भी वह काम कर चुके थे। कोमल जी के साथ ही इस दुर्घटना में मारे गए सभी लोगों की आत्मा की शान्ति के लिए श्रधान्जली देते हैं। साथ ही कामना करते हैं की उनके परिवार पर जो दुखों का पहाड़ टुटा है उसे बर्दास्त करने की हिम्मत आए। हम सभी साथी जैसे कोमल जी के साथ थे आज इस दुःख की घड़ी में उनके परिवार के साथ हैं। हादसे की जानकारी होते ही अपने कुछ साथी मुजफ्फरपुर से गोरखपुर के लिए रवाना हो गए हैं।
Tuesday, July 8, 2008
नई पारी के लिए बधाई.
प्रेम भइया पहले तो आपको जीवन की नई पारी शुरू करने के लिए बधाई। भाई व्यस्तता के कारणनहीं आ पाया। दिल्ली में रहने वाले कुछ और साथी नहीं जा पाए। लेकिन सभी ने आपको बधाई दी है। कृपया कर इसे स्वीकार करें। आप और मेरी नई भाभी दोनों को एक बार फ़िर अपने सभी भूले भटके साथियों के तरफ़ से बधाई। आपका जीवन मंगलमय हो यही कामना है.
धन्यवाद.
Saturday, July 5, 2008
बाथरूम नहीं...अब मीटिंग जनाब
धन्यवाद.
Friday, July 4, 2008
कुछ लिया है तो देना भी सीखो...
गुड मोर्निंग, मैं प्रभुराम आपका पड़ोसी। और ये मेरी बीबी नाथूराम . आज ही यहाँ आया हूँ। एक अमेरिकी कंपनी में हूँ। इसी सेक्टर में मेरा कारपोरेट ऑफिस है। हम दोनों वहीँ जॉब करते हैं। इसीलिए सोचा यहीं फ्लैट किराये पर ले लूँ। बहुत स्वागत है आपका। मैं ज्वाला प्रसाद हूँ। लेकिन आपने क्या कहा मेरी बीबी....। जी हम दोनों ने शादी कर ली है। एक दूजे को जान से ज्यादा चाहते हैं। कहकर दोनों ऑफिस निकल गए। लेकिन फौज से सेवानिवृत ज्वाला जी को भला ये बात कैसे हजम होती। भला दो लड़के आपस में कैसे शादी कर सकते हैं। ज्वाला जी ने भी अपने दरवाजे की कुण्डी लगाई और डायनिंग हॉल में निढाल बैठ सोचने लगे। पुराने ख़यालात की उनकी पत्नी भी तब तक पूजापाठ निपटा चुकी थी। आते ही कहा कौन था। किसने घंटी बजाई थी। ज्वाला बाबु ने उनकी ओर देखा और बोले-नए पड़ोसी हैं। प्रभुराम और नाथूराम। यहीं एक कंपनी में काम करते हैं। नाम सुनते ही उनकी पत्नी शारदा ने कहा क्या सोसाइटी वालों ने बैचलर को मकान दे दिया। ये कैसे किया। मेरे घर में जवान लड़कियां है। भला बगल वाले फ्लैट में बैचलर कैसे रह सकता है। यह सब चुपचाप सुन रहे ज्वाला जी कहते हैं अरे बैचलर तो है लेकिन .... अरे लेकिन क्या। अच्छा बाद में बताऊंगा। अरे अभी बताइए। परेशान ज्वाला जी गरम हो गए। कहा अरे भाई फ़िर से एक बार मुझे कन्फर्म हो लेने दो। इसके बाद ही कुछ बताऊंगा। उनकी पत्नी और झुंझला गई। पहले बात तो बताइए कन्फर्म बाद में कीजियेगा। ऐसी कौन सी बात है की आप इतना परेशान हो गए। कोई चारा नहीं देख ज्वाला जी बोले अरे क्या कहें। बैचलर तो है लेकिन कह रहे थे की दोनों मियां-बीबी हैं। क्या दो लड़के भला मियां-बीबी कैसे हो सकते हैं। आपका दिमाग तो ठीक हैं न। अरे यही सुनकर तो मेरा दिमाग घूम गया है। भला दो लड़के मियां-बीबी कैसे हो सकते हैं। हे भगवान् । इतने में उनकी बड़ी बिटिया रीमा आ गई। क्यों भगवान्-भगवान् हो रही है। ऐसा क्या हो गया। अरे पापा सुना नए पड़ोसी आए हैं। क्या करते हैं। अंकल, आंटी ही हैं की बच्चे भी। अरे तुम्हे क्या लेना देना कोई भी हो। अरे भाई मुझे लगा की बड़े बच्चे होंगे तो मेरे फ्रेंड बनेंगे। छोटे बच्चे होंगे तो और मजे से टाइम पास होगा। इतने में उसकी मम्मी बोली। अरे कोई नहीं है दो लड़के कहाँ से आ गए हैं। ये सोसाइटी वालों ने ठीक नहीं किया। लेकिन तुम्हें इससे क्या है। कोई हो। अगले दिन यह समस्या लेकर ज्वाला जी अपने एक सेवानिवृत बॉस के यहाँ पहुंचे।देखते ही बॉस ने बैठने को तो कहा लेकिन कुछ सोच में तल्लीन दिखे। चेहरे पर चिंता साफ दिख रही थी। खैर उन्होंने रुमाल से पसीना साफ करते हुए कहा और ज्वाला बताओ कैसे आना हुआ। ज्वाला जी ने पहले उनकी चिंता के बारे में पूछा। उन्होंने कहा अरे क्या कहूँ एक पड़ोसी से परेशान हूँ,। मेरे बगल वाले फ्लैट में दो लड़कियां आई हैं। सुबह दोनों ने मुझे नमस्ते अंकल कहा। तबतक तो ठीक था लेकिन इसके बाद जो कहा वो आज तक मेरे दिमाग में नाच रहा है। जानते हो ज्वाला वो दोनों कोई पच्चीस साल की होंगी। टेंशन यह है की मैंने पूछा की तुम दोनों अकेली रहोगी की घर से कोई और आएँगे। इतने में उन दोनों ने कहा अब कौन आयेंगे अंकल। हम दोनों मियां-बीबी हैं। हमने शादी कर ली है। तुम ही बताओ ज्वाला भला ऐसा कभी हो सकता है की दो लड़कियां एक-दुसरे की पति पत्नी हो।बॉस मैं क्या कहूँ मैं भी तो वही आपसे पूछने आया था की क्या दो लड़के आपस में पति-पत्नी हो सकते हैं। क्या मतलब। बॉस जैसे आपके पड़ोस में दो लड़कियां आपके लिए टेंशन बनी हैं उसी तरह मेरे पड़ोस में दो लड़के टेंशन बन गए हैं। फिर क्या दोनों बुढ्ढे अपनी पुरानी संस्कृति के पन्ने खोलने लगे। पति-पत्नी, वो अग्नि साक्षी और शादी। अब तो नया जमाना है। शादी के लिए भला लड़के की क्या जरुरत। लड़का-लड़का से और लड़की-लड़की से ही शादी कर रहे हैं। लेकिन ज्वाला क्या यही समाज है। इसी के लिए हमने संघर्ष किया। भला इन बच्चों का वंश कैसे चलेगा। क्या इनके माता-पिता सहमत होंगे। उनके दिल पर क्या बीतेगी। एक हमारा समाज है की लड़की से दोस्ती पर भी नज़र नहीं उठती थी घरवालों के सामने। और ये भला इतनी बड़ी बात... इन्हे कौन समझायेगा की यही जिंदगी नहीं है। खाने-पिने-भोगने से आगे भी कुछ है..समाज को भी कुछ देना होगा जिसने तुम्हे बहुत कुछ दिया है। उस पिता के अरमान और माता की चाहत का क्या होगा जो तुम्हे चम्मच में दूध पिलाने से लेकर चंदा मामा दिखाने तक कुछ सपने देखती थीं। कुछ लिया है तो देना भी सीखो...
धन्यवाद.
Wednesday, July 2, 2008
जल्द चंगा हों आप
सभी साथियों को मेरा नमस्कार,
सबसे पहले मैं अपनी टीम की तरफ़ से विनय भाई को थोडी आजादी के लिए बधाई देना चाहूँगा। दिल्ली आकर उन्होंने सहारा ज्वाइन किया पिछले महीने रिक्क्शेवाले की गलती से उनका लेफ्ट हाथ टूट गया। आप सोच रहे होंगे की उनका हाथ टूट गया और ये बधाई कैसी। बधाई इसलिए की हाथ पर लगे बंधन नुमा प्लास्टर को सफलतापूर्वक उन्होंने झेल लिया। अब प्लास्टर उतर गया है। सो हाथ को थोडी रहत मिली है। इसीलिए बधाई। पुरी बधाई इसलिए नहीं की अभी उनको थोड़ा और धैर्य दिखाना है। वह काफी संयमित व्यक्तित्वा वाले पहले से हैं। खैर हमलोग यही उम्मीद करेंगे की आगे कुछ दिन और धैर्य रखें ताकि हाथ फिर से हर कम के लिए चंगा हो जाए। ब्लॉग के साथी आपके जल्द दुरुस्त होने की कामना करते हैं।
धन्यवाद.