प्रगति मेहता
हिंदुस्तान , मुजफ्फरपुर
February Ki us Sham,Shuru Hua Ye Safar Aaj Bhi Jari Hai..
सचमुच, वो पुराने दिन याद आ गए। लग ही नहीं रहा था की आज हम एक दशक के बाद इस तरह जुटे थे। बुद्धमार्ग के घर आँगन रेस्तरां में सभी को दिन में 12 बजे पहुंचना था। ठीक 12 बजे मैं होटल में तैयारियां का फ़ाइनल इंतजाम देखने जैसे पहुंचा की सामने लीना जी दिखीं। उनके आते ही चेहरे पर मुस्कान लिए पंकजेश पंकज आये। मैं थोडा मोटा जरुर हो गया लेकिन पंकजेश भैया आज भी वैसे के वैसे दिखे। इतने में वही हा.. हा.. हा.. वाली पुरानी हंसी लिए शशिभूषण दाखिल हुए। फिर क्या एक एक कर सभी साथी रेल के डब्बे की तरह जुटते गए और हमारी ट्रेन वो पुराने स्टेशन पर पहुँच गई। हम सभी दशक की इस दूरी को एक पल में ख़तम कर दिए। हम आज अलग-अलग बैनर में काम करते हैं। अलग-अलग ओहदे पर हैं. लेकिन आज उस समय हम सिर्फ और सिर्फ संवाद सूत्र ही थे। खूब बातें हुई। कुलभूषण की वो घास वाली खबर हो या अनिल उपाध्याय की नेपाल बोर्डर से जुड़ने वाली खबर देशदीपक भैया ने सभी की चर्चा की। तरह तरह की चर्चा चलती रही। कैसे 4 फरवरी को हम मिले थे। उस दिन कुछ ने तो शंकर प्रसाद को ही संपादक समझ लिया था। वगैरह, वगैरह।
महिलावों की भी टीम थी। लीना, संगीता पाण्डेय , दीपिका और सीमा सुजानी थीं। कुछ के नहीं रहने की कमी भी खल रही थी। तीन घंटे तक सभी वही पुरानी यादों में डूबे रहे। भोजन पानी हुआ तो फोटोग्राफी भी हुई। कोमल के अपने बीच नहीं रहने का अफ़सोस सभी ने किया। वहीँ आदरणीय गिरीश मिश्र जी को सभी ने न सिर्फ याद किया बल्कि तहे दिल से उनका शुक्रिया भी व्यक्त किया। सियाराम यादव और अवधेश प्रीत को भी लोगों ने याद किया। विनय, रंजन, अतुल, विजय, राकेश रंजन, राजेश, अतुलेश, नीरज और ओमप्रकाश सभी एक दूसरे की याद ताजा करते रहे। पटना में होकर भी तो कुछ न होने की वजह से इस पार्टी का हिस्सा नहीं बन पाए। हालाँकि सभी साथियों ने यह तय किया की अगले साल हम सभी 26 जनवरी को ही मिलेंगे। तब गिरीश मिश्र जी, सियाराम सर और अवधेश प्रीत को आमंत्रित करेंगे। बिहार से बाहर अपना जलवा बिखेर रहे साथियों को भी बुलाएँगे।
बहरहाल, आज की मीटिंग वाकई में मजेदार रही। अपने साथियों के लिए उन यादगार पलों को तस्वीर के माध्यम दिखाने की कोशिश की जाएगी।
धन्यवाद
प्रगति।
देशवासी बदलते मौसम की तपिश और महंगाई की आग में झुलस रहे हैं। कई राज्य नक्सली आग में जल रहे हैं। मुंबई पर हमला करने वाला अमेरिका में बैठा है। कुछ लोग ऐसे हैं जो सौख से कम खाते हैं ताकि उनका शरीरआकर्षक बना रहे। वहीँ करोड़ों की तादाद ऐसी है जिसके पास अपने शरीर को बचाने के लिए खाना नहीं मिलता है।
लेकिन इन सबों से किसी का क्या लेना। आप के लिए भले ये जीने मरने का मामला होगा लेकिन नेताओं के लिए ये सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप के हथियार हैं। हमारे देश में ये ज्वलंत मुद्दे नहीं हैं। मुद्दे हैं-
-सानिया-शोएब की शादी
-थरूर-सुनंदा प्रकरण
-अमिताभ और गाँधी परिवार के रिश्ते
-मुलायम और अमर सिंह के सम्बन्ध
-शरद पवार के एक से एक बयां
-सुरक्षाकर्मियों की मौत नहीं बल्कि चिदम्वरम का इस्तीफा
क्या हो गया है हमारे देश के अगली कतार में बैठे लोगों को।
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार 1901 के बाद 2009 सबसे गर्म रहा था। 2010 की हालत भी कुछ वैसी ही है। मार्च में ही बिहार सहित देश का बड़ा हिस्सा तपिश में जलने लगा था। लू चलने से लोग परेशां हो गए। कई मैदानी हिस्सों में 1953 के बाद ऐसी गर्मी पड़ रही है। मई में क्या हालत होगी यह सोचकर लोग घबरा रहे हैं। इस तरह मौसम का बदलाव ग्लोबल वार्मिंग के असर को दर्शाता है।
सरकार को देशवासियों की चिंता होनी चाहिए। कोई भूखा न रहे इसका इंतजाम करना चाहिए। कोई सुरक्षाकर्मी नक्सली हिंसा में न मारा जाये यह गारंटी देनी चाहिए। विपक्ष को भी अपनी जवाबदेही तय करनी चाहिए। सिर्फ सदन में शोर-शराबा कर देने से किसी का भला नहीं होगा। जनता ने मौका दिया है तो कुछ उसके लिए भी कीजिये। मौसम, महंगाई। आतंक और भुखमरी पर भी सोचिये। सानिया-शोएब और सुनंदा से आगे भी एक दुनिया है।