देशवासी बदलते मौसम की तपिश और महंगाई की आग में झुलस रहे हैं। कई राज्य नक्सली आग में जल रहे हैं। मुंबई पर हमला करने वाला अमेरिका में बैठा है। कुछ लोग ऐसे हैं जो सौख से कम खाते हैं ताकि उनका शरीरआकर्षक बना रहे। वहीँ करोड़ों की तादाद ऐसी है जिसके पास अपने शरीर को बचाने के लिए खाना नहीं मिलता है।
लेकिन इन सबों से किसी का क्या लेना। आप के लिए भले ये जीने मरने का मामला होगा लेकिन नेताओं के लिए ये सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप के हथियार हैं। हमारे देश में ये ज्वलंत मुद्दे नहीं हैं। मुद्दे हैं-
-सानिया-शोएब की शादी
-थरूर-सुनंदा प्रकरण
-अमिताभ और गाँधी परिवार के रिश्ते
-मुलायम और अमर सिंह के सम्बन्ध
-शरद पवार के एक से एक बयां
-सुरक्षाकर्मियों की मौत नहीं बल्कि चिदम्वरम का इस्तीफा
क्या हो गया है हमारे देश के अगली कतार में बैठे लोगों को।
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार 1901 के बाद 2009 सबसे गर्म रहा था। 2010 की हालत भी कुछ वैसी ही है। मार्च में ही बिहार सहित देश का बड़ा हिस्सा तपिश में जलने लगा था। लू चलने से लोग परेशां हो गए। कई मैदानी हिस्सों में 1953 के बाद ऐसी गर्मी पड़ रही है। मई में क्या हालत होगी यह सोचकर लोग घबरा रहे हैं। इस तरह मौसम का बदलाव ग्लोबल वार्मिंग के असर को दर्शाता है।
सरकार को देशवासियों की चिंता होनी चाहिए। कोई भूखा न रहे इसका इंतजाम करना चाहिए। कोई सुरक्षाकर्मी नक्सली हिंसा में न मारा जाये यह गारंटी देनी चाहिए। विपक्ष को भी अपनी जवाबदेही तय करनी चाहिए। सिर्फ सदन में शोर-शराबा कर देने से किसी का भला नहीं होगा। जनता ने मौका दिया है तो कुछ उसके लिए भी कीजिये। मौसम, महंगाई। आतंक और भुखमरी पर भी सोचिये। सानिया-शोएब और सुनंदा से आगे भी एक दुनिया है।
1 comment:
wo duniya kaun sa hai mere bhai???/
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