सचमुच, वो पुराने दिन याद आ गए। लग ही नहीं रहा था की आज हम एक दशक के बाद इस तरह जुटे थे। बुद्धमार्ग के घर आँगन रेस्तरां में सभी को दिन में 12 बजे पहुंचना था। ठीक 12 बजे मैं होटल में तैयारियां का फ़ाइनल इंतजाम देखने जैसे पहुंचा की सामने लीना जी दिखीं। उनके आते ही चेहरे पर मुस्कान लिए पंकजेश पंकज आये। मैं थोडा मोटा जरुर हो गया लेकिन पंकजेश भैया आज भी वैसे के वैसे दिखे। इतने में वही हा.. हा.. हा.. वाली पुरानी हंसी लिए शशिभूषण दाखिल हुए। फिर क्या एक एक कर सभी साथी रेल के डब्बे की तरह जुटते गए और हमारी ट्रेन वो पुराने स्टेशन पर पहुँच गई। हम सभी दशक की इस दूरी को एक पल में ख़तम कर दिए। हम आज अलग-अलग बैनर में काम करते हैं। अलग-अलग ओहदे पर हैं. लेकिन आज उस समय हम सिर्फ और सिर्फ संवाद सूत्र ही थे। खूब बातें हुई। कुलभूषण की वो घास वाली खबर हो या अनिल उपाध्याय की नेपाल बोर्डर से जुड़ने वाली खबर देशदीपक भैया ने सभी की चर्चा की। तरह तरह की चर्चा चलती रही। कैसे 4 फरवरी को हम मिले थे। उस दिन कुछ ने तो शंकर प्रसाद को ही संपादक समझ लिया था। वगैरह, वगैरह।
महिलावों की भी टीम थी। लीना, संगीता पाण्डेय , दीपिका और सीमा सुजानी थीं। कुछ के नहीं रहने की कमी भी खल रही थी। तीन घंटे तक सभी वही पुरानी यादों में डूबे रहे। भोजन पानी हुआ तो फोटोग्राफी भी हुई। कोमल के अपने बीच नहीं रहने का अफ़सोस सभी ने किया। वहीँ आदरणीय गिरीश मिश्र जी को सभी ने न सिर्फ याद किया बल्कि तहे दिल से उनका शुक्रिया भी व्यक्त किया। सियाराम यादव और अवधेश प्रीत को भी लोगों ने याद किया। विनय, रंजन, अतुल, विजय, राकेश रंजन, राजेश, अतुलेश, नीरज और ओमप्रकाश सभी एक दूसरे की याद ताजा करते रहे। पटना में होकर भी तो कुछ न होने की वजह से इस पार्टी का हिस्सा नहीं बन पाए। हालाँकि सभी साथियों ने यह तय किया की अगले साल हम सभी 26 जनवरी को ही मिलेंगे। तब गिरीश मिश्र जी, सियाराम सर और अवधेश प्रीत को आमंत्रित करेंगे। बिहार से बाहर अपना जलवा बिखेर रहे साथियों को भी बुलाएँगे।
बहरहाल, आज की मीटिंग वाकई में मजेदार रही। अपने साथियों के लिए उन यादगार पलों को तस्वीर के माध्यम दिखाने की कोशिश की जाएगी।
धन्यवाद
प्रगति।